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162 साल पहले ब्यावर में बना था प्रदेश का पहला शुलब्रेड चर्च, अजमेर के चर्चों में क्यों है स्कॉटिश स्थापत्य कला का प्रभाव - प्रभु यीशु की जन्मस्थली

राजस्थान में पहला शुलब्रेड चर्च 162 साल पहले ब्यावर में बना था. अजमेर के कई चर्चों में स्कॉ​टिश स्थापत्य कला का प्रभाव देखने को मिलता है.

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jan 29, 2024, 4:16 PM IST

क्रिसमस पर जानिए अजमेर के चर्चों के बारे में...

अजमेर. राजस्थान की ह्र्दयस्थली अजमेर हर धर्म के लोगों की धर्मस्थली है. इनमें मसीह समाज के लोग भी शामिल हैं. अजमेर में मसीह समाज के प्राचीन चर्च भी कई यहां मौजूद हैं. उत्तर भारत का सबसे प्राचीन चर्च ब्यावर में है. अजमेर ही नहीं बल्कि प्रदेश में मिशनरी की शुरुआत ब्यावर से हुई थी. देश और दुनिया में मसीह समाज क्रिसमस की तैयारी में जुटा हुआ है. अजमेर में भी चर्चों और घरों में क्रिसमस की तैयारी जोर-शोर से की जा रही है.

नैसर्गिक सौंदर्य और राजपुताना में बीच में होने के कारण अंग्रेजों का अजमेर पसंदीदा शहर रहा है. कई शिक्षण संस्थाएं और रेल-कारखाने अजमेर में उस जमाने से है. अजमेर डायसिस ऑफ राजस्थान सीएनएन नार्थ इंडिया का सबसे बड़ा केंद्र है. नार्थ इंडिया में 66 छोटे बड़े चर्च इसके आधीन हैं. यहीं से उन तमाम चर्च में पादरी लगाये जाते हैं. साथ ही चर्च के संचालन पर नजर रखी जाती है.

पढ़ें: King Charles III ताजपोशी : ब्रिटेन के शाही परिवार का मसूरी से है खास नाता, 'राजा' की ताजपोशी पर भेजा गया बधाई संदेश

डायसिस ऑफ राजस्थान सीएनएन नार्थ इंडिया के विशप रेमसन विक्टर ने बताया कि अजमेर में नार्थ इंडिया का सबसे पुराना चर्च ब्यावर में है. यह चर्च करीब 162 वर्ष पहले बनाया गया था. ब्यावर अंग्रेजों के जमाने में छावनी था. उन्होंने बताया कि अजमेर के लगभग सभी चर्च में स्कॉटिश आर्किटेक्चर का प्रभाव है. ब्यावर के पहले चर्च में स्कॉटलैंड से आए स्कॉटिश आर्किटेक ने चर्च का निर्माण करवाया था. चर्च की छत, खिड़कियां, खिड़कियों पर लगे गिलास, सीलिंग बहुत ही आकर्षक है. यह सभी चर्च एक सदी बीत जाने के बाद भी पूरी मजबूती के साथ खड़े हैं और अपनी सुंदरता से सभी को आकर्षित करते हैं.

ब्यावर में सबसे पुराना चर्च: राजस्थान का सबसे पुराना ऐतिहासिक फ्यूल ब्रेड मेमोरियल चर्च ब्यावर में है. इस चर्च को मदर चर्च के नाम से भी जाना जाता है. ब्यावर की टेकरी पहाड़ी पर 3 मार्च, 1960 को इसकी नींव रखी गई थी. इस चर्च के निर्माण में अद्भुत स्थापत्य कला का समावेश है. इस चर्च के निर्माण में लगाई गई पट्टियां एक दूसरे से लॉकिंग सिस्टम से जुड़ी हुई हैं. खास बात यह है कि चर्च के निर्माण को प्रभु यीशु की जन्मस्थली येरूसलम में बनाए गए चर्च के समान ही स्वरूप दिया गया है.

पढ़ें: EXCLUSIVE एक ऐसा ईसाई समुदाय जो नहीं मनाता क्रिसमस, दावा- बाइबिल में नहीं है ईसा मसीह के जन्म की तारीख

बताया जाता है कि इस चर्च के निर्माण के बाद ही राजस्थान में मसीह समाज का विस्तार हुआ. इस चर्च में घंटाघर भी है जिसकी आवाज कभी कई किलोमीटर तक सुनी जा सकती थी. डायसिस का राजस्थान सीएनएन के बिशप सैमसंग विक्टर ने बताया कि 1858 में स्कॉटलैंड से दो पादरी रेव्ह. विलियम और रेव्ह.स्टील शूल ब्रेड प्रभु यीशु का संदेश भारत में पहुंचने के उद्देश्य से वह आए थे. उनका जहाज मुंबई बंदरगाह उतरा और यहां से वह बैलगाड़ी से आबू रोड शिवगंज आए. जहां लीवर में बीमारी के कारण रेव्ह स्टील की मौत हो गई.

पढ़ें: Samantha Ruth Prabhu: एक साल पहले इस बिमारी से ठीक हुई थी सामंथा, अब शेयर किया एक्सपीरियंस

उसके बाद रेव्ह विल्सन ने आगे की यात्रा की. 3 मार्च, 1860 को रेव्ह विलियम नेट टेकरी पहाड़ी पर चर्च की नींव रखी. 12 वर्ष में चर्च का निर्माण हुआ. इस चर्च के बाद चित्तौड़गढ़ में भी दूसरा चर्च बनाया गया. ब्यावर से ही मिशनरी की शुरुआत हुई. उन्होंने बताया कि ब्यावर में प्रदेश के पहले चर्च में पीतल का घंटा 1871 में इंग्लैंड से मंगवाया था. जिसका वजन 18 मण है. इसके बाद 12 मण कब पीतल का घड़ियाल भी मंगाया गया था. इसको चर्च के ऊपर की ओर लगाया गया था. इसकी आवाज पूरे अजमेर में गूंजती है.

अजमेर में यह चर्च भी खूबसूरत: अजमेर में भी स्कॉटिश स्थापत्य कला को दर्शाते कई चर्च हैं. इनमें सेंट मेरी चर्च काफी पुराना है. 1903 में सेंट मेरी चर्च का निर्माण हुआ था. पाल बिचला में स्थित इस चर्च की ईमारत इतनी खूबसूरत है. इसको लोग निहारते ही चले जाते हैं. चर्च की छत, टावर, खिड़कियां, दरवाजे, भीतर सीलिंग, प्रार्थना सभागार, पिलर्स काफी मजबूती से टिके हुए हैं. पूरे चर्च में पत्थर को ईंट की शेप देकर चुनाई की गई है.

इसी तरह से अजमेर का सबसे बड़ा सेंट एनस्लम चर्च भी अपनी खूबसूरती से आकर्षित करता आया है. भीतर विशाल प्रार्थना सभागार है. भीतर लकड़ी की शानदार कारीगरी देखने को मिलती है. यहां क्रिसमस ईव पर भव्य मेले का आयोजन होता है. शहर के बीच रोबसन मैमोरियल चर्च अंदर और बाहर की खूबसूरती को देख लोग इसको निहारना नहीं भूलते. अग्रसेन सर्किल के समीप सेंट्रल मेथोडिस्ट चर्च डायलिसिस का राजस्थान सीएनएन का हिस्सा नहीं है. लेकिन इस चर्च की बनावट भी आकर्षित है. इसके अलावा सेंट पॉल चर्च, सेंट जोसफ, नसीराबाद में प्राचीन चर्च भी अपने स्थापत्यकला के कारण वर्षों से सुंदर और मजबूती से खड़े हैं.

प्रभु यीशु के स्वागत के लिए चर्च और घरों में तैयारियां जारी: दिसंबर का महीना शुरू होने के साथ ही देश और दुनिया में क्रिसमस पर्व की तैयारी शुरू हो जाती है. अजमेर में भी क्रिसमस का पर्व मनाने के लिए लोगों में उत्साह बना हुआ है. चर्च और घरों में रंग रोगन किया जा रहा है. क्रिसमस के पर्व को खास बनाने के लिए मसीह समाज के युवा भी प्लान कर रहे हैं. विभिन्न चर्चाओं में भी रंग रोगन और साफ सफाई की जा रही है. रात के समय युवाओं की टोलियां मसीह समाज के लोगों के घरों में जाकर केरोल सांग गाकर प्रभु यीशु के आगमन का संदेश दे रहे हैं.

क्रिसमस पर जानिए अजमेर के चर्चों के बारे में...

अजमेर. राजस्थान की ह्र्दयस्थली अजमेर हर धर्म के लोगों की धर्मस्थली है. इनमें मसीह समाज के लोग भी शामिल हैं. अजमेर में मसीह समाज के प्राचीन चर्च भी कई यहां मौजूद हैं. उत्तर भारत का सबसे प्राचीन चर्च ब्यावर में है. अजमेर ही नहीं बल्कि प्रदेश में मिशनरी की शुरुआत ब्यावर से हुई थी. देश और दुनिया में मसीह समाज क्रिसमस की तैयारी में जुटा हुआ है. अजमेर में भी चर्चों और घरों में क्रिसमस की तैयारी जोर-शोर से की जा रही है.

नैसर्गिक सौंदर्य और राजपुताना में बीच में होने के कारण अंग्रेजों का अजमेर पसंदीदा शहर रहा है. कई शिक्षण संस्थाएं और रेल-कारखाने अजमेर में उस जमाने से है. अजमेर डायसिस ऑफ राजस्थान सीएनएन नार्थ इंडिया का सबसे बड़ा केंद्र है. नार्थ इंडिया में 66 छोटे बड़े चर्च इसके आधीन हैं. यहीं से उन तमाम चर्च में पादरी लगाये जाते हैं. साथ ही चर्च के संचालन पर नजर रखी जाती है.

पढ़ें: King Charles III ताजपोशी : ब्रिटेन के शाही परिवार का मसूरी से है खास नाता, 'राजा' की ताजपोशी पर भेजा गया बधाई संदेश

डायसिस ऑफ राजस्थान सीएनएन नार्थ इंडिया के विशप रेमसन विक्टर ने बताया कि अजमेर में नार्थ इंडिया का सबसे पुराना चर्च ब्यावर में है. यह चर्च करीब 162 वर्ष पहले बनाया गया था. ब्यावर अंग्रेजों के जमाने में छावनी था. उन्होंने बताया कि अजमेर के लगभग सभी चर्च में स्कॉटिश आर्किटेक्चर का प्रभाव है. ब्यावर के पहले चर्च में स्कॉटलैंड से आए स्कॉटिश आर्किटेक ने चर्च का निर्माण करवाया था. चर्च की छत, खिड़कियां, खिड़कियों पर लगे गिलास, सीलिंग बहुत ही आकर्षक है. यह सभी चर्च एक सदी बीत जाने के बाद भी पूरी मजबूती के साथ खड़े हैं और अपनी सुंदरता से सभी को आकर्षित करते हैं.

ब्यावर में सबसे पुराना चर्च: राजस्थान का सबसे पुराना ऐतिहासिक फ्यूल ब्रेड मेमोरियल चर्च ब्यावर में है. इस चर्च को मदर चर्च के नाम से भी जाना जाता है. ब्यावर की टेकरी पहाड़ी पर 3 मार्च, 1960 को इसकी नींव रखी गई थी. इस चर्च के निर्माण में अद्भुत स्थापत्य कला का समावेश है. इस चर्च के निर्माण में लगाई गई पट्टियां एक दूसरे से लॉकिंग सिस्टम से जुड़ी हुई हैं. खास बात यह है कि चर्च के निर्माण को प्रभु यीशु की जन्मस्थली येरूसलम में बनाए गए चर्च के समान ही स्वरूप दिया गया है.

पढ़ें: EXCLUSIVE एक ऐसा ईसाई समुदाय जो नहीं मनाता क्रिसमस, दावा- बाइबिल में नहीं है ईसा मसीह के जन्म की तारीख

बताया जाता है कि इस चर्च के निर्माण के बाद ही राजस्थान में मसीह समाज का विस्तार हुआ. इस चर्च में घंटाघर भी है जिसकी आवाज कभी कई किलोमीटर तक सुनी जा सकती थी. डायसिस का राजस्थान सीएनएन के बिशप सैमसंग विक्टर ने बताया कि 1858 में स्कॉटलैंड से दो पादरी रेव्ह. विलियम और रेव्ह.स्टील शूल ब्रेड प्रभु यीशु का संदेश भारत में पहुंचने के उद्देश्य से वह आए थे. उनका जहाज मुंबई बंदरगाह उतरा और यहां से वह बैलगाड़ी से आबू रोड शिवगंज आए. जहां लीवर में बीमारी के कारण रेव्ह स्टील की मौत हो गई.

पढ़ें: Samantha Ruth Prabhu: एक साल पहले इस बिमारी से ठीक हुई थी सामंथा, अब शेयर किया एक्सपीरियंस

उसके बाद रेव्ह विल्सन ने आगे की यात्रा की. 3 मार्च, 1860 को रेव्ह विलियम नेट टेकरी पहाड़ी पर चर्च की नींव रखी. 12 वर्ष में चर्च का निर्माण हुआ. इस चर्च के बाद चित्तौड़गढ़ में भी दूसरा चर्च बनाया गया. ब्यावर से ही मिशनरी की शुरुआत हुई. उन्होंने बताया कि ब्यावर में प्रदेश के पहले चर्च में पीतल का घंटा 1871 में इंग्लैंड से मंगवाया था. जिसका वजन 18 मण है. इसके बाद 12 मण कब पीतल का घड़ियाल भी मंगाया गया था. इसको चर्च के ऊपर की ओर लगाया गया था. इसकी आवाज पूरे अजमेर में गूंजती है.

अजमेर में यह चर्च भी खूबसूरत: अजमेर में भी स्कॉटिश स्थापत्य कला को दर्शाते कई चर्च हैं. इनमें सेंट मेरी चर्च काफी पुराना है. 1903 में सेंट मेरी चर्च का निर्माण हुआ था. पाल बिचला में स्थित इस चर्च की ईमारत इतनी खूबसूरत है. इसको लोग निहारते ही चले जाते हैं. चर्च की छत, टावर, खिड़कियां, दरवाजे, भीतर सीलिंग, प्रार्थना सभागार, पिलर्स काफी मजबूती से टिके हुए हैं. पूरे चर्च में पत्थर को ईंट की शेप देकर चुनाई की गई है.

इसी तरह से अजमेर का सबसे बड़ा सेंट एनस्लम चर्च भी अपनी खूबसूरती से आकर्षित करता आया है. भीतर विशाल प्रार्थना सभागार है. भीतर लकड़ी की शानदार कारीगरी देखने को मिलती है. यहां क्रिसमस ईव पर भव्य मेले का आयोजन होता है. शहर के बीच रोबसन मैमोरियल चर्च अंदर और बाहर की खूबसूरती को देख लोग इसको निहारना नहीं भूलते. अग्रसेन सर्किल के समीप सेंट्रल मेथोडिस्ट चर्च डायलिसिस का राजस्थान सीएनएन का हिस्सा नहीं है. लेकिन इस चर्च की बनावट भी आकर्षित है. इसके अलावा सेंट पॉल चर्च, सेंट जोसफ, नसीराबाद में प्राचीन चर्च भी अपने स्थापत्यकला के कारण वर्षों से सुंदर और मजबूती से खड़े हैं.

प्रभु यीशु के स्वागत के लिए चर्च और घरों में तैयारियां जारी: दिसंबर का महीना शुरू होने के साथ ही देश और दुनिया में क्रिसमस पर्व की तैयारी शुरू हो जाती है. अजमेर में भी क्रिसमस का पर्व मनाने के लिए लोगों में उत्साह बना हुआ है. चर्च और घरों में रंग रोगन किया जा रहा है. क्रिसमस के पर्व को खास बनाने के लिए मसीह समाज के युवा भी प्लान कर रहे हैं. विभिन्न चर्चाओं में भी रंग रोगन और साफ सफाई की जा रही है. रात के समय युवाओं की टोलियां मसीह समाज के लोगों के घरों में जाकर केरोल सांग गाकर प्रभु यीशु के आगमन का संदेश दे रहे हैं.

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