देहरादून:मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो कोई भी मुश्किल आड़े नहीं आती. हौसलों के सहारे भरी गई उड़ान जीत के प्लेटफार्म पर आकर ही रुकती है. कुछ ऐसी ही उम्मीदों के साथ एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर अमीषा चौहान ने पर्वतारोहण का सफर शुरू किया, जो कि उन्हें माउंट एवरेस्ट की ऊंचाइयों पर ले गया. अमीषा चौहान की कामयाबी पर Etv भारत की टीम उनसे खास बातचीत की.
अमीषा चौहान ने माउंट एवरेस्ट पर लहराया भारत का तिरंगा. बता दें कि 29 वर्षीय अमीषा चौहान देहरादून के नकरौंदा की रहने वाली हैं. अमीषा चौहान ने विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह कर देश के साथ ही प्रदेश का भी नाम रोशन किया है. अमीषा ने 23 मई 2019 को तमाम कठिनाइयों से जूझते हुए माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया था. माउंट एवरेस्ट फतह कर नकरौंदा वापस लौटीं अमीषा चौहान ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान बताया कि वह बचपन में पायलट बनने का सपना देखती थीं, लेकिन किन्हीं कारणों के चलते उनका यह सपना पूरा नहीं हो पाया. जिसके बाद उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. बाद में उन्होंने नोएडा में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर काम करना शुरू किया, लेकिन इस काम में उनका मन ज्यादा दिन नहीं लगा.अमीषा ने बताया कि साल 2017 में उन्होंने उत्तरकाशी में पहली बार ट्रैकिंग की. जिसके बाद उनकी मुलाकात बछेंद्री पाल से हुई जो कि भारत की माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली महिला हैं. अमीषा बताती हैं कि बछेंद्री पाल से मिलने के बाद उन्हें लगा कि वे पर्वतारोहण से आसमान छूने का अपना सपना पूरा कर सकती हैं. जिसके बाद उनके जीवन की एक नई यात्रा शुरू हुई और वे पर्वतारोहण करने लगीं.ईटीवी भारत से खास बातचीत में अमीषा चौहान ने बताया कि किसी भी ऊंची चोटी को फतह करने में लाखों रुपए का खर्च आता है. जिसे उठा पाना एक मध्यमवर्गीय परिवार के लिए काफी कठिन होता है. अमीषा ने कहा कि वे चाहती हैं कि प्रदेश सरकार को भी देश के अन्य राज्यों की तर्ज पर पर्वतारोहियों को और अधिक वित्तीय सहायता देनी चाहिए. जिससे कि प्रदेश के अन्य पर्वतारोही भी विश्व की ऊंची चोटियों को छूकर देश का नाम रोशन कर सकें.बता दें की अमीषा चौहान माउंट एवेरेस्ट फतह करने से पहले विश्व के 7 महाद्वीपों की कुछ अन्य ऊंची चोटियों को भी फतह कर चुकी हैं. जिसमें अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी किलिमंजारो भी शामिल है. इसके साथ ही अमीषा यूरोप की अल्ब्यूश चोटी को भी फतह कर चुकी हैं. अमीषा टिहरी जिले की पहली पर्वतारोही हैं.