वाराणसी: कार्तिक मास में आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान, देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है. यह एकादशी दीपावली के बाद आती है. आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं, इसीलिए इसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है. कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 3 नवम्बर, गुरुवार को सायं 7 बजकर 31 मिनट पर लग चुकी है जो कि अगले दिन 4 नवम्बर, शुक्रवार को सायं 6 बजकर 09 मिनट तक रहेगी. हरिप्रबोधिनी एकादशी का व्रत 4 नवम्बर, शुक्रवार को रखा जाएगा.
व्रतकर्ता को प्रातः काल समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त हो स्वच्छ वस्त्र धारण कर अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात् देव प्रबोधिनी एकादशी के व्रत एवं भगवान श्रीविष्णुजी की पूजा-अर्चना का संकल्प लेना चाहिए आज के दिन व्रत-उपवास रखकर भगवान् श्रीविष्णु जी की विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है. भगवान् श्रीहरि विष्णु की महिमा में श्रीविष्णु सहस्रनाम, श्रीपुरुषसूक्त तथा श्रीविष्णुजी से सम्बन्धित मन्त्र 'ॐ श्रीविष्णवे नमः' का जप करना चाहिए.
इस बारे में ज्योतिषाचार्य आचार्य दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री ने बताया कि मान्यता है कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में 4 माह शयन के बाद जागते हैं. भगवान विष्णु के शयनकाल के चार मास में विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं, इसीलिए देवोत्थान एकादशी पर भगवान हरि के जागने के बाद शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू होते हैं. इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है.
देवोत्थान एकादशी व्रत और पूजा विधि:प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन और उनसे जागने का आह्वान किया जाता है. इस दिन होने वाले धार्मिक कर्म इस प्रकार हैं-
● इस दिन प्रातःकाल उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए.
● घर की सफाई के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाना चाहिए.
● एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल,मिठाई, बेर, सिंघाड़े, ऋतुफल और गन्ना उस स्थान पर रखकर उसे डलिया से ढांक देना चाहिए.
● इस दिन रात्रि में घरों के बाहर और पूजा स्थल पर दीये जलाना चाहिए.
● रात्रि के समय परिवार के सभी सदस्य को भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवताओं का पूजन करना चाहिए.
● इसके बाद भगवान को शंख, घंटा-घड़ियाल आदि बजाकर उठाना चाहिए और ये वाक्य दोहराना चाहिए- उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाये कार्तिक मास
तुलसी विवाह का आयोजन (Tulsi Vivah 2022):देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है. तुलसी के वृक्ष और शालिग्राम की यह शादी सामान्य विवाह की तरह पूरे धूमधाम से की जाती है, चूंकि तुलसी को विष्णु प्रिया भी कहते हैं इसलिए देवता जब जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं. तुलसी विवाह का सीधा अर्थ है, तुलसी के माध्यम से भगवान का आह्वान करना. शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दंपत्तियों के कन्या नहीं होती, वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें.
तुलसी विवाह की पौराणिक कथा:एक समय भगवान नारायण से लक्ष्मी जी ने पूछा- “हे नाथ! आप दिन रात जागा करते हैं और सोते हैं तो लाखों-करड़ों वर्ष तक सो जाते हैं तथा इस समय में समस्त चराचर का नाश कर डालते हैं. इसलिए आप नियम से प्रतिवर्ष निद्रा लिया करें. इससे मुझे भी कुछ समय विश्राम करने का समय मिल जाएगा. लक्ष्मी जी की बात सुनकर नारायण मुस्कुराए और बोले- देवी! तुमने ठीक कहा है. मेरे जागने से सब देवों और खासकर तुमको कष्ट होता है. तुम्हें मेरी वजह से जरा भी अवकाश नहीं मिलता.