वाराणसी:वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि वह शुभ दिन जब भागीरथ ने अपने पूर्वजों को तारने के लिए कठिन तपस्या के बाद मां गंगा को धरती पर बुलाया. यही वह दिन है जब मां गंगा ने धरती पर आकर हर किसी को तृप्त कर दिया और भागीरथ की तपस्या को भी सार्थक किया. हजारों सालों से मां गंगा न सिर्फ लोगों के पापों को धो रही हैं, बल्कि बहुत से लोगों की जीविका का साधन भी बनी हुई हैं, लेकिन समय के साथ ही गंगा का स्वरूप भी बदलता जा रहा है. एक वक्त था जब गंगा विकराल रूप के साथ बहा करती थीं, लेकिन अब जलवायु में हो रहे परिवर्तन और बढ़ रही गर्मी ने मां गंगा को काफी समेट दिया है. धर्मनगरी वाराणसी में तो मां गंगा का वह स्वरूप देखने को मिलने लगा है, जिसकी शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की थी.
कई फीट घाटों से हुईं दूर
अप्रैल की शुरुआत और मई के आते-आते तक मां गंगा में कई जगहों पर रेत के टीले दिखाई दे रहे हैं, जबकि घाट से होकर बहने वाली गंगा कई घाटों को छोड़कर आगे बढ़ चुकी हैं. वैज्ञानिकों की मानें तो गंगा ने लगभग हर घाट को 40 से 50 फीट तक छोड़ दिया है, जिसकी वजह से घाटों के नीचे की सतह भी खोखली होती जा रही है. हर साल गंगा में पानी कम हो रहा है और मां गंगा जो दूसरों के कष्ट और पाप हरती थीं वह खुद तकलीफ में हैं.
सूख रहीं मोक्षदायिनी मां गंगा
गर्मी के मौसम में गंगा में पानी कम होना कोई नई बात नहीं है. हर साल गंगा का जलस्तर तेजी से कम हो जाता है और इस बार भी हालात कुछ ऐसे ही हैं. मई के महीने में गंगा के जल स्तर में भारी कमी देखी जा रही है. गंगा के 84 घाटों की लंबी श्रंखला के किनारे नाव से घूमने पर आपको गंगा का कम पानी साफ तौर पर दिखाई दे जाएगा. घाटों के नीचे से बहने वाली गंगा अब सीढ़ियों को छोड़कर दूर होती चली जा रही हैं. घाटों को छोड़कर गंगा और दूर हो गई हैं, जिसकी वजह से घाटों से गंगा की दूरी साफ तौर पर दिखाई भी दे रही है. हालात बिगड़ते जा रहे हैं.