वाराणसी: वैसे तो हर महीने 2 तारीख पड़ती है, लेकिन जून के महीने में पड़ने वाली 2 तारीख थोड़ी अलग और खास होती है. यह वह तारीख है जो इंसान को उस दो वक्त की रोटी की सच्चाई बता देती है, जिसके लिए वह पूरे जीवन संघर्ष करता है. बदलते समय और तकनीक के बाद 2 जून की तारीख को 2 जून की रोटी के नाम से सोशल मीडिया पर खूब ट्रेंड कराया जाता है. 2 जून की रोटी यानी जीवन के सफर में दो वक्त के खाने का प्रबंध. कहने और सुनने में तो ये बड़ा ही सरल और आसान शब्द लगता है, लेकिन सच में उन लोगों के सामने इस वक्त 2 जून की रोटी का बड़ा संकट है जो रोज कमाते हैं और रोज खाते हैं. कोरोना के इस कठिन दौर में जब देश के अधिकांश हिस्सों में आंशिक कर्फ्यू है और कुछ राज्य लॉकडाउन लगाकर इस वायरस की संक्रमण को रोकने का प्रयास कर रहे हैं, तब 2 जून की रोटी का प्रबंध करना ऐसे लोगों के लिए एक चैलेंज बन चुका है. सड़क के किनारे पकौड़ी बेचने वाले हों या पंचर बनाने वाले या फिर गाड़ियों की मरम्मत करने वाले हर कोई बेहाल है. हालात यह है कल तक हर दिन मेहनत करने के बाद दो वक्त की रोटी का प्रबंध करने वाले इन लोगों के सामने अब 2 जून की रोटी का संकट खड़ा है.
कौन आएगा गाड़ी बनवाने
बनारस के महमूरगंज इलाके में सड़क किनारे छोटी सी गुमटी में गाड़ियों की मरम्मत करने वाले संतोष बीते 40 दिनों से बेरोजगार थे. इसकी बड़ी वजह यह थी कि कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए प्रदेश आंशिक लॉकडाउन से जूझ रहा था. इसके पहले पिछले साल जब लॉकडाउन लगाया गया था, तब भी संतोष के सामने बड़ा संकट था, लेकिन तब मदद करने वालों की लंबी भीड़ थी. इस बार तो हालात बदल गए हैं. आंशिक कर्फ्यू में मदद नहीं मिली और हालत और हालात दोनों बिगड़ते चले गए. संतोष बताते हैं कि 40 दिन तक घर पर बैठे रहने के बाद मंगलवार को उन्होंने पहली बार दुकान खोली है, लेकिन सुबह से शाम तक सिर्फ एक ही गाड़ी मरम्मत के लिए आई. जिसके बाद उन्हें महज 150 रुपये की आमदनी हुई. अब सवाल बड़ा है कि इतने रुपयों से वह 2 जून की रोटी का प्रबंध करें तो करें कैसे.