वाराणसी: पार्वती संग सदाशिव खेल रहे होली, भूत-प्रेत बेताल करते ठिठोली. बाबा भोले गुरुवार को अपनी प्रिय नगरी काशी में अपनी भार्या माता गौरा संग जमकर होली खेले, मौका था रंगभरी एकादशी का, जहां हर कोई बाबा भोले की भक्ति में डूबा दिखा, क्योंकि आज से ही काशी में होली का हुड़दंग भी शुरू हो गया और माता गौरा का गौना लेकर भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर निकल गए.
जिसके बाद भक्तों ने उन्हें पहला गुलाल चढ़ाकर अपनी होली की शुरुआत की और काशी में रंगभरी एकादशी का यह पर्व धूमधाम के साथ मनाया गया. इसके साथ निभाई गई 356 साल पुरानी हुई परंपरा, जिसका साक्षी बनने के लिए देश-विदेश के कोने-कोने से बड़ी संख्या में लोग बनारस पहुंचे थे.
भक्तों ने बाबा भोले के साथ खेली होली. दरअसल, काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत कुलपति तिवारी के मंदिर के नजदीक स्थित पैतृक आवास के विश्वनाथ कॉरिडोर में शामिल होने के बाद, अब इस परंपरा के निर्वहन विश्वनाथ मंदिर से लगभग 400 मीटर दूर स्थाई महंत आवास से किया गया. यहां भगवान भोलेनाथ, माता गौरा और गोद में भगवान गणेश की रजत प्रतिमा को रजत सिंहासन पर सवार कर पहले भक्तों ने हर्षोल्लास के साथ जमकर नाच गाना करते हुए होली का आनंद लिया.
इसके बाद शुरू हुई भगवान भोलेनाथ और माता गौरा की पालकी यात्रा, जहां रजत पालकी को विश्वनाथ मंदिर के पुजारियों और महंत आवास के लोगों ने अपने कंधे पर उठाकर 400 मीटर की पैदल पालकी यात्रा निकालकर इसे विश्वनाथ मंदिर तक पहुंचाया. इसके बाद बाबा विश्वनाथ के मुख्य गर्भ गृह में इसे स्थापित कर विशेष पूजन के बाद भक्तों ने जमकर होली खेली. इसके साथ ही गुरुवार से वाराणसी में होली का हुड़दंग भी शुरू हो गया.
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इन परंपराओं के अलावा 1934 की एक पुरानी परंपरा का निर्वहन भी वाराणसी के इस महापर्व में गुरुवार को किया गया. 1934 में स्वरूप गांधी नेहरू जब वाराणसी आई थी और विश्वनाथ मंदिर के इस उत्सव में शामिल हुई थी. तब उन्होंने भगवान भोलेनाथ को भारतीय परिधान पहनाने की अपील की थी, जिसके बाद से लगातार हर साल रंगभरी एकादशी पर भोलेनाथ को खादी का कुर्ता और अकबरी टोपी पहनाई जाती है.
वहीं इस बार भी भगवान भोलेनाथ इसी भारतीय परिधान में नजर आए और माता गौरा की विदाई करवा कर भक्तों के संग होली खेलते हुए अपने धाम पहुंचे. इसके पहले महंत आवास पर मंत्रोचार के साथ रजत प्रतिमा का दुग्ध अभिषेक कर वैदिक ब्राह्मणों ने महाआरती भी की गई.