वाराणसी: यूपी नगर निकाय चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज हो रही है. जैसे-जैसे मौसम का पारा चढ़ रहा है वैसे- वैसे राजनैतिक पारा भी अब ऊपर चढ़ने लगा है. वाराणसी में भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी समेत अपना दल कमेरावादी, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी ने अपने मेयर पद के प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है. जबकि दो अन्य निर्दल ताल ठोक रहे हैं. यानी कुल 8 लोगों ने मेयर पद के लिए नामांकन दाखिल किया है.
निकाय चुनावों में बीजेपी का हमेशा रहा कब्जा
बता दें कि जैसे-जैसे मतदान की तिथि नजदीक आ रही है. हर राजनीतिक दल अपने प्रत्याशी के जीत का दम भर रहा है, लेकिन दावों से उलट बनारस का राजनैतिक मिजाज और चुनावी हालात कुछ और ही बयां करते रहे हैं. इसकी बड़ी वजह यह है कि बनारस के निकाय चुनावों पर हमेशा से बीजेपी काबिज रही है. पार्षदों से लेकर मेयर का पद बीजेपी के पास ही रहा है.
1995 में पहली बार हुआ आम चुनाव
दरअसल, नगर निगम के लिए 1995 में पहली बार आम चुनाव हुआ था. इस आम चुनावों में महापौर पद पर पहली बार भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी सरोज सिंह जीतकर मेयर पद बीजेपी के ही पास रहा. 1960 में नगरपालिका के गठन के बाद वाराणसी में पहली बार 1960 में नगर प्रमुख का चुनाव हुआ था. 1 फरवरी 1966 से 4 जुलाई 1970 और 1 जुलाई 1973 से 11 फरवरी 1989 तक महापालिका प्रशासकीय नियंत्रण में रही.
आम जनता की नहीं होती थी सीधी सहभागिता
इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार उत्पल पाठक का कहना है कि नगर महापालिका के अस्तित्व में रहने के दौरान नगर प्रमुख का चुनाव सभासद करते थे. यही नहीं नगर प्रमुख पद के प्रत्याशी को सदन का सदस्य होना जरूरी नहीं था. यही वजह रही कि समाज के विभिन्न वर्गों के प्रसिद्ध व्यक्ति इस पद पर अपना भाग्य आजमाते रहे. इस चुनाव में आम जनता की सीधी सहभागिता नहीं होती थी. ऐसे में भ्रष्टाचार भी जमकर था, लेकिन 1995 में वाराणसी नगर निगम के गठन के बाद जब पहली बार आम चुनाव हुए तो मेयर की सीट को भाजपा ने अपने कब्जे में ले लिया.