वाराणसी:बनारस का रेल इंजन कारखाना अब आत्मनिर्भर हो रहा है. शुरुआत के सफर में जहां एक-एक सामान के लिए इस रेल इंजन कारखाने को अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन पर निर्भर होना होता था. तो वहीं, 2014 के बाद अब 98 फीसदी से ज्यादा सामानों को भारत में उत्पादित करके रेल इंजनों का निर्माण कराया जा रहा है. बड़ी बात यह है कि इस आत्मनिर्भरता से ना सिर्फ रेल इंजनों को तैयार करने वाले लागत में कमी आई है, बल्कि रोजगार का भी सृजन हुआ है.
बनारस रेल इंजन कारखाना 98 फीसदी इंजनों का निर्माण 1961 अगस्त में डीजल विद्युत रेल इंजन कारखाने की स्थापना की गई. जनवरी 1964 में बरेका ने पहले रेल इंजन का निर्माण कर देश को समर्पित किया था. 1976 में पहले रेल इंजन तंजानिया को निर्यात किया गया. इसके बाद निर्यात का यह कारवां शुरू हो गया. बड़ी बात यह थी कि, निर्यात के बावजूद भी इंजन को तैयार करने के लिए बरेका को अमेरिकी तकनीक के साथ-साथ अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी जैसे विदेशों पर उपकरणों व इंजन के पार्ट्स के लिए निर्भर होना पड़ता था. लेकिन, 2014 के बाद मेकिंग इंडिया के विचार से भारत में ही ज्यादातर उपकरणों को तैयार किया जा रहा है. वर्तमान में बरेका में 8000 से ज्यादा इंजनों का निर्माण किया जा चुका है और 11 देशों में यहां के बनाए इंजन भेजे जा रहे हैं.
98 फीसदी समानो का हुआ स्वदेशीकरण, बरेका बना आत्मनिर्भर:जन सम्पर्क अधिकारी राजेश कुमार की माने तो अब 98 फ़ीसदी से ज्यादा सामान स्वदेशी हो चुके हैं. भारत में इन समानों का उत्पादन हो रहा है. इन समानों के जरिये रेल इंजन को तैयार किया जाता है. उन्होंने बताया कि रेल इंजन के सामानों में ऑयल रेडिएटर, सर्जररेस्टर, ट्रांसफॉर्मर, प्रपल्सर सिस्टम, कंप्रेसर, बैटरी बॉक्स, कंट्रोल पैनल, ट्रांसफार्मर, बोगी इत्यादि कई सामानों के उत्पादन किए जाते हैं. वर्तमान में महज सिर्फ दो ऐसे सामान हैं जिनके लिए हमें विदेशों पर निर्भर होना पड़ता है. उन सामानों में एक पैंटोग्राफ और दूसरा वेक्यूम सर्किट ब्रेकर है. ये आज भी विदेशों से आते है.
रेल इंजन के लागत में आई कमी:पहले एक मालवाहक गाड़ी को तैयार करने में 11 से 12 करोड़ और पैसेंजर गाड़ी को तैयार करने में 14 करोड रुपए की लागत आती थी. लेकिन, 2014 के बाद जब धीरे-धीरे रेल इंजन बनाने के सामानों में बरेका आत्मनिर्भर होने लगा, तो इनको तैयार करने की लागत और समय में कमी देखने को मिली. वर्तमान लागत की बात करें, तो अब एक मालवाहक गाड़ी 10 करोड़ में और एक पैसेंजर गाड़ी 11.3 करोड़ 3 में तैयार हो जा रही है.
रोजगार का हो रहा सृजन:रेल इंजन कारखाना के आत्मनिर्भर होने से स्वदेशी करण को बढ़ावा मिला है, इससे सबसे बड़ा फायदा राजस्व को हुआ है. क्योंकि अब राजस्व की बचत हो रही है. इसके साथ ही देश में वेंडरों की संख्या बढ़ गई है. इनकी संख्या बढ़ने से अप्रत्यक्ष तौर पर भी रोजगार उत्पादित हो रहे है. उन्होंने बताया कि बरेका कारखाने की बात करें, तो यहां में वर्तमान समय में 700 के लगभग कर्मचारी कार्य कर रहे हैं. यहां पर उत्पादन के कारण रोजगार में बढ़ोतरी देखी जा रही है.
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