वाराणसी:दो सितंबर से गणेश उत्सव की शुरुआत हो रही है. गणेश चतुर्थी से लेकर चतुर्दशी तक 10 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव की मूल शुरुआत महाराष्ट्र से हुई है, लेकिन अब यह धीरे-धीरे पूरे देश के अलग-अलग हिस्सों में मनाया जाने लगा है. शायद बहुत कम लोग जानते हैं कि गणेश चतुर्थी को शुरू करने के पीछे की क्या मंशा थी. गणेश चतुर्थी की शुरुआत में एक तरफ स्वतंत्रता के आंदोलन को धार देने की कोशिश की गई तो दूसरी ओर सामाजिक कुरीतियों पर सीधा वार भी किया गया. कुल मिलाकर गणेश चतुर्थी का यह पर्व देश प्रेम के साथ सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने में महत्वपूर्ण योगदान निभाता आ रहा है.
स्वतंत्रता आंदोलन को दी धार-
इस बारे में इतिहासकार प्रोफेसर सतीश कुमार राय ने बताया कि किस तरह से गणेश चतुर्थी की शुरुआत देश के स्वतंत्रता आंदोलन से लोगों को जोड़ने के उद्देश्य से की गई. प्रोफेसर राय के मुताबिक सन 1894 में जब अंग्रेजों ने राजनीतिक समागम रैलियों पर रोक लगा दी. उस वक्त लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने पेशवाओं की तरफ से गणेश जी की प्रतिमा बाहर निकालकर शहर में घुमाये जाने को लेकर एक नया प्लान तैयार किया.
मुख्य बिंदु-
- गणेश चतुर्थी की शुरुआत देश के स्वतंत्रता आंदोलन से लोगों को जोड़ने के उद्देश्य से की गई.
- 1894 में अंग्रेजों ने राजनीतिक समागम रैलियों पर रोक लगा दी.
- नेता और क्रांतिकारियों के बीच आंदोलन को लेकर कोई चर्चा ही नहीं हो पा रही थी.
- लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने पेशवाओं की तरफ से गणेश चतुर्थी के मौके पर प्लान तैयार किया.
- गणेश जी की प्रतिमा शहर में घुमाये जाने और 10 दिन के उत्सव का रूप देने की बात कही.
विरोध का करना पड़ा था सामना-