सुलतानपुर: अंग्रेजों की गोली से विक्टोरिया मंजिल पर ब्रिटिश हुकूमत का झंडा उतारकर तिरंगा लहराने वाले बाबा रामलाल को मौजूदा सरकार भूल चुकी है. अवध के किसान आंदोलन, नमक आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, होम रूल आंदोलन में लंबा समय जेल में बिताने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की सुध लेने वाला मौजूदा सरकार में कोई नहीं है. महात्मा गांधी जवाहरलाल नेहरू के हमराही बाबा रामलाल की पुण्यतिथि पर परिजनों ने उन्हें शिद्दत से याद किया.
कौन थे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाबा रामलाल
सुलतानपुर में 9 सितंबर 1868 को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाबा राम लाल मिश्र का जन्म पयागीपुर में हुआ था. मैट्रिक यानी आठवीं पास करने के बाद स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाबा रामलाल सेना में भर्ती हो गए. इस दौरान पटना में उन्होंने बाल गंगाधर तिलक का भाषण सुना और तिलक की बातों से वे काफी प्रेरित हुए और आजादी की लड़ाई में शामिल हुए. अंग्रेजी हुकूमत ने 19 नवंबर 1913 को अंग्रेजी सरकार के खिलाफ उनपर देशद्रोह का आरोप लगाते हुए 5 साल की सजा सुनाई. इलाहाबाद की नैनी जेल में सजा बिताने के दौरान वह लाल बहादुर शास्त्री के संपर्क में आए, जहां से होमरूल आंदोलन का खाका तैयार किया गया.
देश को आजाद कराने के कार्यों को राष्ट्रद्रोह मानते हुए 1917 में इन्हें फिर से 6 माह की जेल हुई. 1919 में बाबा रामलाल कांग्रेस में शामिल हुए और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से उनकी मुलाकात हुई. महात्मा गांधी की प्रेरणा से अंग्रेजी पहरे के बावजूद नमक बनाया और उत्तर प्रदेश में नमक आंदोलन को परवान चढ़ाया. 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान एक बार फिर अंग्रेजी सरकार ने 18 महीने जेल में कैद करने का हुक्म दिया. 1931 में सुलतानपुर की विक्टोरिया मंजिल जो कि नगर पालिका भवन के नाम से जानी जाती है उसपर उन्होंने पहली बार तिरंगा फहराया और स्वतंत्र भारत के लोगों के हृदय में अलख जगाई. भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान भी बाबा रामलाल ने 23 माह जेल में बिताया.