सुलतानपुर:जनपद में सारनाथ, कौशांबी, श्रावस्ती की तरह भगवान बुद्ध की तपोस्थली गढा आज भी शांति संदेशों की प्रेरणा स्थली बना हुआ है. ढांचा भले ही जमींनदोज जो चुका हो, लेकिन आज भी बुद्ध अनुयायियों को एएसआई की खोजबीन का इंतजार है. अनुयायी यहां आते हैं और पौराणिक वट वृक्ष के नीचे ऊर्जा और महात्मा बुद्ध के संदेश प्राप्त करते हैं. मानवता समरसता का संदेश दे रहा यह स्थल प्रशासनिक और राजनीतिक उपेक्षा के शिकार के तौर पर भी देखा जा रहा है.
बौद्ध भिक्षुओं का प्रेरणास्रोत गढा
सुलतानपुर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गढ़ा क्षेत्र आज भी बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए आस्था, श्रद्धा और महात्मा बुद्ध के संदेशों का प्रेरणा स्रोत बना हुआ है. बड़े पैमाने पर बौद्ध भिक्षु यहां आते हैं, निवास करते हैं, साधना करते हैं और ईश्वरीय प्रेरणा लेकर शांति संदेशों के प्रचार-प्रचार के लिए निकल पड़ते हैं. प्राचीन कुआं और वट वृक्ष आज भी महात्मा बुद्ध की उपस्थिति का साक्षी बना हुआ है.
गढा बहुत प्राचीन स्थल है. यहां बौद्ध भिक्षुओं का कार्यक्रम होता रहता है. भोज भंडारा आदि प्रोग्राम भी चलते रहते हैं. दूर-दूर से दर्शनार्थी और श्रद्धालु यहां आते रहते हैं. बताया जाता है कि यहां भगवान बुद्ध के नाख यानी नाखून और केस यानी बाल छूट गए थे, जो आज भी श्रद्धा और आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं.
प्रोफेसर प्रभात श्रीवास्तव कहते हैं कि एएसआई यानि आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की हम बात करते हैं तो उनके प्राचीन शोध में गढा का अहम स्थान रहा है. साहित्यिक स्रोत की तरफ जाएं तो एचआर नेविल साहब के गैजेटियर गजेटियर ऑफ अवध और गजेटियर ऑफ सुलतानपुर में भी गढ़ा का जिक्र है.