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पूर्व कांग्रेस मंत्री का बयान, शिक्षा की कमी से पिछड़ा मुस्लिम समुदाय

उत्तर प्रदेश के सुलतानपुर जिले में गणतंत्र दिवस के एक कार्यक्रम में पहुंचे पूर्व कांग्रेस मंत्री मुईद अहमद ने कहा कि तालीम की कमी से ही आज मुस्लिम समुदाय पिछड़ा हुआ है. उन्होंने कहा कि शिक्षा को मजहब से कतई नहीं जोड़ना जाना चाहिए.

sultanpur news
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Published : Jan 26, 2021, 12:48 PM IST

सुलतानपुर:कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे मुईद अहमद ने मजहबी जकड़ पर गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम में कटाक्ष किया. उन्होंने कहा कि तालीम की कमी से ही आज मुस्लिम समुदाय पिछड़ा हुआ है. सभी धर्मों में मुस्लिम सबसे पीछे हैं. अपने शिक्षा का कद बढ़ा कर मुस्लिम बच्चे अधिकारी, योजना निर्माण समेत अन्य क्षेत्रों में आगे आएं. मुस्लिम भी मुख्यधारा के साथ मिले. पूर्व मंत्री ने लोकतंत्र की कमी की भरपाई के लिए न्यायपालिका, पत्रकारिता और कार्यपालिका को सक्रिय होने का आह्वान किया है.

पूर्व कांग्रेस मंत्री मुईद अहमद
अलीगढ़ विश्वविद्यालय से जुड़ा प्रकरणउत्तर प्रदेश के अलीगढ़ विश्वविद्यालय में किसी शिक्षक की तरफ से अंग्रेजी नहीं पढ़ने के आए बयान पर कांग्रेस के पूर्व मंत्री मुईद अहमद ने कटाक्ष किया. उन्होंने कहा कि अंग्रेजी समेत अन्य हर विषय पढ़ाए जाने चाहिए, जिससे कि बच्चों का सर्वांगीण विकास हो. शिक्षा को मजहब से कतई नहीं जोड़ना जाना चाहिए.इस्लाम में अंग्रेजी पढ़ना हराम नहींपूर्व मंत्री ने कहा कि किसी ज़माने में जब अलीगढ़ यूनिवर्सिटी खोली गई तो हमारे मौलानाओं ने कहा कि अंग्रेजी पढ़ना हराम है, अगर हिंदुस्तान में सबसे पिछड़ी कोई कौम है तो वह हमारी कौम है दूसरी कोई कौम नहीं है, क्योंकि हमने तालीम की तरफ ध्यान नहीं दिया. हमें खुशी है कि अब हमारे गांव में मुस्लिम बच्चियों पर भी तालीम की तरफ ध्यान दिया जा रहा है. बिना शिक्षा के आप किसी से मुकाबला नहीं कर सकते हैं. हम चाहते हैं कि हमारी कौम के लोग भी जज बनें , अधिकारी बनें, कंपटीशन करें , योजना बनाएं और बेहतर मुकाम हासिल करें.मुस्लिम छात्राओं ने किए सांस्कृतिक कार्यक्रम

शहर के नेशनल पब्लिक स्कूल की छात्राओं ने रंगमंच के जरिए तिरंगा ध्वज को सलामी देते हुए सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए. इस दौरान राष्ट्रध्वज का गान किया गया और कौमी सौहार्द बढ़ाने का आह्वान किया गया. दुनिया में अगर सबसे मजबूत लोकतंत्र है तो वह भारत में है. लेकिन अगर लोकतंत्र पर आंच आ रही है तो कष्ट होता है. हम यही चाहते हैं कि हमारे संविधान में कमी न आए. यदि ब्यूरोक्रेसी, पत्रकारिता और न्यायपालिका में कमी न आए तो विधायिका की कमी की भरपाई की जा सकती है.

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