सीतापुर:मुगल शासनकाल में अवध की राजधानी रहा कस्बा खैराबाद का मशहूर 52 डंडे का ताजिया बुधवार को कर्बला के दहल में सुपुर्दे खाक किया गया. इस खास मौके पर हिन्दू-मुसलमान दोनों धर्मो के लाखों अकीदतमंदों ने हजरत इमाम हुसैन की शहादत को सलाम करते हुए अपनी मनौतियां भी मांगी. इस ताजिये का अपना खास इतिहास है. जिसके चलते इसे कौमी एकता की बड़ी मिसाल माना जाता है.
कर्बला में दफन हुआ 52 डंडे का ताजिया. ग्यारहवीं तारीख को किया जाता है दफन
यूं तो हर जगह मोहर्रम माह की दसवीं तारीख को कर्बला में ताजिये दफन किये जाते हैं. लेकिन खैराबाद कस्बे के इस ऐतिहासिक ताजिये को ग्यारहवीं तारीख को दफन किया जाता है. यह ताजिया मुहर्रम की दसवीं तारीख को कस्बे के रौजा दरवाजा स्थित हजरत यूसुफ खान की दरगाह से उठाया जाता है. उसके बाद पूरे कस्बे में गश्त करने के बाद ग्यारहवीं मोहर्रम को कर्बला में पहुंचता है. यहां पर एक दहल तैयार किया जाता है. जिसमें अकीदतमंद दूध, बताशे और अगरबत्ती आदि लगाकर जियारत करते हैं. बाद में उसी दहल में ताजिये को सुपुर्दे खाक किया जाता है.
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सभी धर्मों के लोग होते हैं शामिल
इस ताजिये का पुराना और अहम इतिहास है. कस्बे के एक बुजुर्ग ने खैराबाद कस्बे के सभी 52 मोहल्लों से एक एक डंडा इकठ्ठा कर 52 डंडे का ताजिया तैयार किया था. इस ताजिये का मकसद कस्बे में कौमी एकता को मजबूत करना था. जिसकी बड़ी मिसाल आज भी परंपरागत तरीके से देखने को मिलती है. इस ताजियेदारी मे सभी धर्मों के लाखों लोग पूरी अकीदत के साथ शामिल होते हैं. खास बात यह भी है कि लोग इस खास ताजिये पर फूल और तबर्रुख आदि पेश करके अपनी मनौतियां भी मांगते हैं. उसे पूरी होने के बाद अगले साल यहां आकर फिर फूल और तबर्रुख पेश करते हैं. ताजियेदारी का यह सिलसिला हजरत इमाम हुसैन की शहादत की यादगार में मनाया जाता है.
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हजरत इमाम हुसैन की याद में ताजिया निकाला जाता है. जिसे 10 तारिख की जगह 11 तारिख को दफन किया जाता है. बूढ़े बाबा के नाम से जाना जाता है.
कारी इस्लाम, अकीदतमंद
52 मौहल्लों के नाम से एक डंडा बांधा जाता था. जिसके चलते इसे 52 डंडे का ताजिया नाम दिया गया
जलीस बेग, स्थानीय