शाहजहांपुर:आज (19 दिसंबर) पूरा देश बलिदान दिवस मना रहा है. आज ही के दिन काकोरी कांड के महानायकों को अलग-अलग जिलों में फांसी दी गई थी. काकोरी कांड के बाद शाहजहांपुर से तीन अमर शहीदों को अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया था. अमर शहीदों पर यह चंद लाइनें बिल्कुल सटीक बैठती हैं. 'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का बस यही बाकी निशां होगा'. यह अमर शहीद अशफाक उल्ला खां पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं, जो मुल्क की आजादी की खातिर हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए. अशफाक उल्ला खां और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की दोस्ती हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल है. इन शहीदों की कुर्बानी पर आज हर कोई फक्र करता है. काकोरी कांड के महानायक अशफाक उल्ला खां का परिवार उनके एक-एक ऐतिहासिक पल को संजोए रखा हुआ है.
दरअसल, आज के दिन को पूरा भारत काकोरी शहीद महानायक के बलिदान दिवस के रूप में मना रहा है. क्योंकि आज ही के दिन तीनों देश प्रेमियों राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खां को अलग-अलग जेलों में फांसी दी गई थी. शाहजहांपुर को शहीदों की नगरी के रूप में जाना जाता है. क्योंकि यह स्थान काकोरी कांड के महानायक क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह की जन्मस्थली है. शाहजहांपुर से ही काकोरी कांड की रूपरेखा तैयार की गई थी. इसके बाद काकोरी कांड को अंजाम तक पहुंचाया गया था. अंग्रेजों ने इन तीनों क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करके अलग-अलग जेलों में डाल दिया था. 19 दिसंबर 1927 को इन तीनों महानायकों को फांसी दे दी गई थी.
शहीद अशफाक उल्ला खां का जन्म शहर के मोहल्ला एमनज़ई जलालनगर में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था. उन्होंने शाहजहांपुर के एवी रिच इंटर कॉलेज में पढ़ाई की थी. यहां उनके साथ राम प्रसाद बिस्मिल उनके सहपाठी थे. यह दोनों कॉलेज में पढ़ने के बाद आर्य समाज मंदिर में देश की आजादी की रूपरेखा तैयार करते थे. जिले का आर्य समाज मंदिर हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल है. इस मंदिर के पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के पिता पुजारी थे.
आर्य समाज मंदिर में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल जोकि पंडित थे और अशफाक उल्ला खां जो कट्टर मुसलमान थे दोनों की दोस्ती आज भी हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल पेश करती है. दोनों एक ही थाली में खाना खाते थे. मुस्लिम होते हुए भी अशफाक उल्ला खां आर्य समाज मंदिर में अपना ज्यादा से ज्यादा समय बिताते थे. देश की आजादी के लिए इसी मंदिर में नई नई योजनाएं बनाया करते थे. इन दोनों की अमर दोस्ती ने काकोरी कांड करके अंग्रेजों से लोहा लिया था. काकोरी कांड के बाद दोनों दोस्तों को अलग-अलग जेलों में फांसी दे दी गई और दोनों 19 दिसंबर 1927 को हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए.