सहारनपुर:दीपावली के बाद इस त्योहारी सीजन में आज गोवर्धन पूजन का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है. सनातन धर्म से जुड़े परिवार गाय के गोबर से भगवान गिरिराज की आकृति बनाकर पूजन करते हैं. बताया जा रहा है कि आज ही के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने न सिर्फ गोवर्धन पूजन किया था, बल्कि स्वयं ही गोवर्धन का रूप धारण कर इस पूजन को स्वीकार किया था.
मान्यता है कि इस पूजन के करने से सुख समृध्दि बनी रहती है. इस बार गोवर्धन पूजन के लिये शुभ मुहूर्त शाम 4:16 बजे से 7:12 बजे तक है. भगवान गिरिराज जी के विशेष मंत्र 'ॐ श्री गिरिराजाये नमः' के उच्चारण से पूजा करने पर भगवान गिरिराज जी प्रसन्न होते हैं.
घर में सुख-शांति के लिए की जाती पूजा. गोवर्धन पूजा कथा
ईटीवी से बातचीत में पंडित रोहित वशिष्ठ ने बताया कि भगवान इंद्र को अपनी शक्तियों पर घमंड हो गया. भगवान श्रीकृष्ण ने उनके घमंड को चूर करने के लिए एक लीला रची. उन्होंने सभी ब्रजवासियों को और अपनी माता को एक पूजा की तैयारी करते हुए देखा और यशोदा मां से पूछने लगे, ' मईया आप सब किसकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं ? ' यशोदा माता ने उन्हें बताया कि 'वह इन्द्रदेव की पूजा की तैयारी कर रही हैं. 'भगवान कृष्ण ने पूछा ' मईया हम सब इंद्र की पूजा क्यों करते है ?' तब यशोद माता ने बताया कि 'इंद्र वर्षा करते हैं और उसी से हमें अन्न और हमारी गाय के घास मिलता है.
यह सुनकर कृष्णजी ने तुरंत कहा 'मईया हमारी गाय तो अन्न गोवर्धन पर्वत पर चरती है तो हमारे लिए वही पूजनीय होना चाहिए. इंद्र देव तो घमंडी हैं वह कभी दर्शन नहीं देते हैं'. भगवान श्रीकृष्ण की बात मानते हुए सभी ब्रजवासियों ने इन्द्रदेव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा की. इस पर क्रोधित होकर भगवान इंद्र ने मूसलाधार बारिश शुरू कर दी. वर्षा को बाढ़ का रूप लेते देख सभी ब्रज के निवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगे. तब कृष्णजी ने वर्षा से लोगों की रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा (सबसे छोटी उंगली) पर उठा लिया.
इसके बाद उन्होंने सबको अपने गायों सहित पर्वत के नीचे शरण लेने को कहा. इससे इंद्र देव और अधिक क्रोधित हो गए और वर्षा की गति और तेज कर दी. इन्द्र का अभिमान चूर करने के लिए तब श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियंत्रित करें और शेषनाग से मेड़ बनाकर पर्वत की ओर पानी आने से रोकने को कहा.
इंद्र देव लगातार रात-दिन मूसलाधार वर्षा करते रहे. काफी समय बीत जाने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि कृष्ण कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं. तब इन्द्रदेव ब्रह्मा जी के पास गए, तब उन्हें ज्ञात हुआ कि श्रीकृष्ण कोई और नहीं स्वयं श्रीहरि विष्णु के अवतार हैं. इतना सुनते ही वह श्रीकृष्ण के पास जाकर उनसे क्षमा याचना करने लगे. इसके बाद देवराज इन्द्र ने कृष्ण की पूजा की और उन्हें भोग लगाया. तभी से गोवर्धन पूजा की परंपरा है. मान्यता है कि इस दिन गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा करने से भगवान कृष्ण प्रसन्न होते हैं और भक्तों को मनचाहा फल देते हैं.
घर में सुख-शांति के लिए की जाती पूजा
पंडित रोहित वशिष्ठ ने बताया भगवान श्रीकृष्ण ने सर्वप्रथम गोवर्धन भगवान की पूजा की थी. दीपावली से अगले दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपने हाथों से गाय के गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाकर न सिर्फ एक रूप से पूजा की, बल्कि भगवान गोवर्धन का रूप धारण करके स्वयं दूसरे रूप से पूजा को स्वीकार किया था. विशेष रूप से इस पूजा को करने से घर में सुख-शांति का वातावरण बना रहता है, घर के सभी सदस्य स्वस्थ रहते हैं. घर में किसी प्रकार की कमी नहीं रहती है.
शाम के समय होती है श्रीगोवर्धन की खास पूजा
पंडित के मुताबिक, भगवान गोवर्धन की पूजा संध्या के समय की जाती है. इस बार पूजन के लिए शुभ मुहूर्त सायं काल में 4:16 से 7:12 बजे तक है. इस समय में भगवान गिरिराज जी की पूजा करने से आपको पूर्णानंद सुख की प्राप्ति होगी. इस पूजा को करने का विशेष तरीका यह है कि गाय के गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाई जाती है. आकृति के मध्य में गोबर के से ही गाय की एवं अन्य पशुओं की आकृति बनाकर स्थापित किया जाता है. भगवान गिरिराज जी के मंत्रों के द्वारा उनकी पूजा की जाती है.
भगवान गिरिराज जी के पूजन के लिए विशेष मंत्र "ॐ श्री गिरिराजाये नमः" का उच्चारण कियाया जाता है. रोली, चावल, फूल, मिठाई एवं दक्षिणा इत्यादि के द्वारा पूजा करें. पूजा के अंत में विशेष ध्यान रखने वाली बात यह है कि गोवर्धन जी की परिक्रमा की जाती हैं. परिक्रमा करते समय 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय'मंत्र का जाप करते रहें, मंत्रोच्चारण से पूजन करने से आपके घर में सुख शांति और समृद्धि बनी रहेगी और आने वाला साल आपका शुभ में बीतेगा.