रायबरेली: जनपद के डलमऊ कस्बे में लगने वाले कार्तिक पूर्णिमा महोत्सव को जिले के सबसे बड़े मेले का दर्जा मिला है. मुख्य पर्व भले ही कार्तिक पूर्णिमा के दिन रहता हो पर मेले को लेकर सदियों से चली आ रही परंपरा का निर्वाहन करने में लोग पीछे नहीं रहते है. मोक्षदायिनी गंगा के तट पर लगने वाले इस मेले में सतयुग से अनवरत हर साल आयोजित होता आ रहा है.
रायबरेली: सतयुग से अनवरत होता चला आ रहा है कार्तिक महोत्सव का सबसे बड़ा मेला - swami devendranand giri
उत्तर प्रदेश के रायबरेली में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर मोक्षदायिनी गंगा के तट पर लगने वाले मेले का अनवरत आयोजत होता चला आ रहा है. कार्तिक पूर्णिमा महोत्सव मेले के आयोजन में प्राचीन नगरी डलमऊ के प्रसिद्ध 'बड़ा मठ' के प्रमुख स्वामी देवेन्द्रानंद गिरी से खास बातचीत की.
कृतिका नक्षत्र होने के कारण ही कार्तिक नाम पड़ा. इसी मास में भगवान शंकर और पार्वती जी द्वारा पूजन में सर्वप्रथम होने के लिए अपने दोनों बेटों के बीच प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था. गणेश जी द्वारा भोलेनाथ और पार्वती जी की परिक्रमा पूरी कर पहला स्थान प्राप्त किया था. कार्तिकेय द्वारा संपूर्ण ब्रह्मांड की परिक्रमा इसी मास में पूरी की गई थी.
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अयोध्या मसले पर महंत देवेंद्रनंद गिरी ने बड़े ही बेबाकी से रखी अपनी राय
उन्होंने कहा कि अयोध्या हर सनातन धर्मी से जुड़ा मसला रहा है. इसका हल न निकलने से हिंदु भी विचलित थे पर लंबे समय बाद मिली इस अपार सफलता से खुशी कई गुना बढ़ गई है. हिन्दू संस्कृति ने दूसरे धर्मों को विकृत कर अपने को उजागर करने का प्रयास कभी नहीं किया गया. हालांकि हिन्दू धर्म के प्रतीक चिन्हों को ध्वस्त करने का प्रयास समय-समय पर कुछ वर्ग के लोगों के द्वारा होता आया है. त्रेता में प्रभु के आविर्भाव से लेकर बाद के कालखंडों में साहित्यकारों और रचनाकारों द्वारा प्रभु से जुड़ी स्मृतियों में अयोध्या का जिक्र मंदिर न होने के कारण अधूरा लगता था.
भारत के कई मंदिरों को तोड़ा गया था और उनकी जगहों पर मस्जिद का निर्माण हुआ है. इस बात में कोई संशय नहीं है पर अब न्यायालय के निर्णय से पुनः भव्य मंदिर का निर्माण होगा. यह सबसे अच्छी बात है. बिना किसी खून खराबे के साथ इतने पुराने और जटिल मसले को हल कराने के लिए पीएम बधाई के पात्र है.
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अयोध्या के बाद क्या मथुरा और काशी का रुख करेगा संत समाज
इस समय अयोध्या पर ही ध्यान केंद्रित कर के मंदिर निर्माण प्रमुख है. उसके बाद ही भविष्य को लेकर कुछ विचार होगा. डलमऊ के इस प्राचीन मठ का इतिहास 500 से ज्यादा वर्षो का पुराना है और 23 पीढ़ियों तक आचार्य मठ के प्रमुख रह चुके है.