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सुख समृद्धि की कामना के लिए महिलाओं ने यमुना तट पर किया गोवर्धन पूजा

प्रयागराज जिले के बलुआ घाट यमुना तट पर पारंपरिक तरीके से गोवर्धन पूजा अन्नकूट का पर्व मनाया गया. दीपावली के अगले दिन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है. यही वजह है कि आज इस त्योहार के दिन सुहागन महिलाओं ने यमुना घाट पर गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाकर उनकी विधि-विधान से पूजा अर्चना की.

यमुना तट पर गोवर्धन पूजा
यमुना तट पर गोवर्धन पूजा

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Published : Nov 5, 2021, 3:02 PM IST

प्रयागराज:जिले के बलुआ घाट यमुना तट पर पारंपरिक तरीके से गोवर्धन पूजा अन्नकूट का पर्व मनाया गया. सुहागन महिलाओं ने यमुना घाट पर गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाकर उनकी विधि-विधान से पूजा अर्चना की और अपने परिवार के सुख-शांति के लिए भगवान गोवर्धन से मंगल कामना की. दिवाली के ठीक अगले दिन मनाया जाने वाला यह त्योहार हर साल की भांति इस वर्ष भी पूरी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया गया.

दीपावली के अगले दिन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा या अन्नकूट का त्योहार मनाया जाता है. आज के दिन विशेष रूप से गाय, बैल, बछड़े की पूजा की जाती है. इसके अलाव इस दिन लोग अपने घरों में या यमुना तट पर गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उसका पूजन करते हैं साथ ही नई फसल के अनाज से भी पूजन किया जाता है. इस दिन 5 तरीकों की दाल से खिचड़ी बनाकर भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी का भोग लगाया जाता है इसके बाद प्रसाद स्वरूप सभी को बांटा जाता है.

यमुना तट पर गोवर्धन पूजा
इसी क्रम में प्रयागराज स्थित बलुआ घाट यमुना तट पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने यमुना नदी में पुण्य की डुबकी लगाई और सुहागिन महिलाओं ने यमुना नदी में स्नान कर गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर फल-फूल माला और रोली चंदन लगाकर पूजा अर्चना की. भगवान गोवर्धन की पूजा कर श्रद्धालुओं ने अपने परिवार की सुख समृद्धि के लिए कामना किया.कैसे हुआ गोवर्धन पूजा की शुरुआत?

हिंदू धार्मिक मान्यताओं अनुसार जब इंद्र ने अपना मान जताने के लिए ब्रज में तेज बारीश की थी तब भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाकर ब्रज वासियों की मूसलाधार बारिश से रक्षा की थी. जब इंद्रदेव को इस बात का ज्ञात हुआ कि भगवान श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं तो उनका अहंकार टूट गया. इंद्र ने भगवान श्री कृष्ण से क्षमा मांगी. गोवर्धन पर्वत के नीचे सभी गोप-गोपियां, ग्वाल-बाल, पशु-पक्षी सुख पूर्वक और बारिश से बचकर रहे. कहा जाता है तभी से गोवर्धन पूजा मनाने की शुरुआत हुई.

गोवर्धन पूजा विधि

लोग अपने घर में गोबर से गोवर्धन पर्वत का चित्र बनाकर उसे फूलों से सजाते हैं. गोवर्धन पर्वत के पास ग्वाल-बाल और पेड़ पौधों की आकृति भी मनाई जाती है. इसके बीच में भगवान कृष्ण की मूर्ति रखी जाती है. इसके बाद षोडशोपचार विधि से पूजन किया जाता है. गोवर्धन पूजा सुबह या फिर शाम के समय की जाती है. पूजन के समय गोवर्धन पर धूप, दीप, जल, फल, नैवेद्य चढ़ाएं जाते हैं. तरह-तरह के पकवानों का भोग लगाया जाता है.

इसके बाद गोवर्धन पूजा की व्रत कथा सुनी जाती है और प्रसाद सभी में वितरित करना होता है. इस दिन गाय-बैल और खेती के काम में आने वाले पशुओं की पूजा होती है. पूजा के बाद गोवर्धन जी की सात परिक्रमाएं लगाते हुए उनकी जय बोली जाती है. परिक्रमा हाथ में लोटे से जल गिराते हुए और जौ बोते हुए की जाती है.

गोवर्धन पूजा का महत्व

मान्यता है जो गोवर्धन पूजा करने से धन, संतान और गौ रस की वृद्धि होती है. गोवर्धन पूजा प्रकृति और भगवान श्री कृष्ण को समर्पित पर्व है. इस दिन कई मंदिरों में धार्मिक आयोजन और अन्नकूट यानी भंडारे होते हैं.

पूजन के बाद लोगों में प्रसाद बांटा जाता है इस दिन आर्थिक संपन्नता के लिए गाय को स्नान कराकर उसका तिलक करें. गाय को हरा चारा और मिठाई खिलाएं फिर गाय की 7 बार परिक्रमा करें. इसके बाद गाय के खुर की पास की मिट्टी एक कांच की शीशी में लेकर उसे अपने पास रख लें. मान्यता है ऐसा करने से धन-धान्य की कभी कमी नहीं होगी.

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