प्रयागराज:संगम नगरी में लगने वाला माघ मेला सनातन धर्म का सबसे बड़ा मेला है. यह तीर्थराज प्रयागराज में हर साल लगता है. पौष पूर्णिमा से लेकर माघी पूर्णिमा तक गंगा किनारे तंबुओं में रहकर श्रद्धालू मां गंगा की उपासना करते हुए कल्पवास करते हैं. सनातन धर्म ग्रंथों में इस बात का वर्णन है कि इस एक महीने प्रयागराज की धरती पर देवताओं का वास होता है. इसी वजह से यहां माघ महीने में माघ मेला लगता है. यहां पर माह भर रहकर लोग कल्पवास करते हैं. ऐसी भी मान्यता है कि कल्पवास करने से घर परिवार में सुख शांति के साथ ही इस जन्म मृत्यु के बंधन से व्यक्ति को मुक्ति मिल जाती है. मोक्ष पाने की कामना से भी श्रद्धालु कल्पवास करते हैं.
संगम के किनारे गंगा की रेती पर लगने वाले माघ मेले में कल्पवास करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. यह भी मान्यता है कि प्रयागराज में कल्पवास करने से परिवार पर मां गंगा का आशीर्वाद बना रहता है, जिससे घर में सुख शांति का वास होता है और मां के भक्तों को मोक्ष की भी प्राप्ति होती है. यही वजह है कि प्रयागराज के माघ मेले में देश के कई राज्यों से आकर हर साल हजारों परिवार कल्पवास करते हैं. कल्पवासियों के ठहरने का ज्यादातर इंतजाम तीर्थ पुरोहितों के यहां होता है. इसके अलावा भी तमाम शिविरों में रहकर कल्पवासी नियमित स्नान करके दान पुण्य व अन्य धार्मिक कर्म करते हैं. 6 जनवरी को पौष पूर्णिमा से माघ मेले में कल्पवास की शुरुआत होने वाली है, जो 5 फरवरी को पढ़ने वाली माघी पूर्णिमा तक चलेगा.
पौष पूर्णिमा से शुरू होता है कल्पवास
माघ महीने में हर साल पौष पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान के साथ कल्पवास शुरू होता है. इसके बाद निरंतर एक माह तक गंगा स्नान, जप-तप, ध्यान व पूजा-पाठ किया जाता है. माघी पूर्णिमा के स्नान पर्व के दिन गंगा स्नान के बाद संकल्प पूजा के साथ कल्पवास की शुरुआत की जाती है. जबकि, माघी पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान के बाद पूर्णाहुति हवन करके कल्पवास का समापन होता है.
प्रयागराज सभी तीर्थों का राजा