प्रयागराज: चांदी का वर्क बनाने वाले कारखानों में अब हथौड़ों और औजारों के टकराने की आवाजे कम होती जा रही हैं. कुछ वर्ष पहले तक ये आवाजें कहीं ज्यादा तेज हुआ करती थी. क्योंकि यहां कई चांदी का वरक बनाने वाले कारीगर हुआ करते थे. लेकिन वक्त के साथ इस उद्योग पर संकट घिरता जा रहा है. प्रतिदिन इन कारीगरों की संख्या भी कम होती जा रही है.
महंगाई बढ़ी लेकिन मजदूरी नहीं
लगभग 45 वर्षों से चांदी का वर्क बनाने वाले अकबरपुर इलाके के मोहमद अल्ताफ कहतें हैं कि महगाई जरूर बढ़ गई है लेकिन उनकी मजदूरी पिछले दस साल में नहीं बढ़ पाई है. साथ ही साथ 10 घंटे की मेहनत करने के बाद तब कहीं जा कर 200 की मजदूरी मिलती है.
धीमी पड़ती जा रही चांदी वर्क बनाने वाले औजारों की आवाजें
प्रयागराज में चांदी का वर्क बनाने के कारोबार से जुड़े कारीगरों का हाल बेहाल है. मुश्किल से अपना और अपने परिवार को गुजारा कर पा रहे हैं. जहां एक ओर कोविड संक्रमण से छोटे कामगारों को राहत मिलती दिखाई दे रही हो, लेकिन इस कारोबार से जुड़े लोगों की हालत नहीं सुधर पाई है.
इलेक्ट्रिक मशीनों से मजदूरी मेंआई कमी
वहीं गुलाम मुस्तफा कहते हैं कि इलेक्ट्रिक मशीनों से चांदी वर्क बनाने का काम जब से शुरू हुआ तभी से और उनकी रोजी रोटी पर संकट आ गया है. दिन भर में एक गड्डी से डेढ़ गड्डी बना पाते हैं तब जाकर कहीं सौ से डेढ़ सौ रुपए तक की मजदूरी मिल पाती है. इससे साथ ही दिक्कत तब और होती है जब ऑर्डर नहीं मिलता.
नहीं है कोई और हुनर
वहीं इसी काम को करने वाले अल्ताफ कहते हैं कि रोजगार का उनका जरिया बस यही है, और दूसरा कोई काम नहीं. अगर दूसरा काम सोचते भी हैं तो वो कर नहीं पाते क्योंकि वो काम हमारे लिए भारी पड़ता है. अल्ताफ कहते हैं कि जहां कभी दस से पंद्रह लोग काम किया करते थे, आज वहां गिनती के चार से पांच लोग बचे हैं. काम करने वालों की संख्या भी लगातार कम होती जा रही है.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप