प्रयागराजःइलाहाबाद हाईकोर्ट ने मां विंध्यवासिनी देवी मंदिर विंध्याचल, मिर्जापुर के निर्माणाधीन गलियारे के दायरे में आने वाले छोटे मंदिरों के ध्वस्तीकरण पर रोक की मांग को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि इससे पहले भी दाखिल जनहित याचिका कोर्ट ने यह कहते हुए 30 मार्च 2007को खारिज कर दी थी कि प्राइवेट मंदिर के खिलाफ जनहित याचिका पोषणीय नहीं है.
इसी आधार पर कोर्ट ने याचिका ग्राह्य न मानते हुए खारिज कर दी है. यह आदेश कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एम एन भंडारी तथा न्यायमूर्ति ए के ओझा की खंडपीठ ने अरुण पाठक की जनहित याचिका पर दिया है. कोर्ट को अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने पिछले आदेश व मंदिर प्रोजेक्ट की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि जनहित याचिका पोषणीय नहीं है. इस पर कोर्ट ने याचिका सुनने से इंकार कर दिया. याची का कहना था कि मंदिर प्रोजेक्ट के तहत तमाम छोटे मंदिरों को तोड़ा जा रहा है. इस पर रोक लगाई जाए.
हाईकोर्ट ने सीडीओ जौनपुर को किया तलब
वहीं, एक अन्य याचिका की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि सरकार मॉडल नियोजक है. ऐसे में याची से बेगार लेना दुर्भाग्यपूर्ण है. कोर्ट ने मुख्य विकास अधिकारी जौनपुर को 27सितंबर को तलब किया है और सफाई मांगी है कि याची को वेतन का भुगतान क्यों नहीं किया जा रहा है. याचिका की सुनवाई 27 सितंबर को होगी. यह आदेश न्यायमूर्ति अजीत कुमार ने आशुतोष कुमार श्रीवास्तव की अवमानना याचिका पर दिया है. याची के पक्ष में कोर्ट का अंतरिम आदेश था कि कार्रवाई न की जाए. इसके बावजूद उसे बर्खास्त कर दिया गया. जब गलती का अहसास हुआ तो 12 फरवरी 2020 को बहाल कर लिया गया और आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट पेश की. इस पर याची ने कोर्ट को बताया कि मार्च 19 से 12फरवरी 2020 तक का एक पैसे का भुगतान नहीं किया गया है. इसके बाद 5 माह तक वेतन दिया गया है. जिसपर कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार बेगार नहीं ले सकती.