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हाईकोर्ट ने मांगी महाधिवक्ता कार्यालय अग्निकांड की जांच रिपोर्ट, विभागों के रवैये पर मुख्य सचिव को लगाई फटकार

अफसरों और सरकारी लंबित मुकदमों में सरकारी अधिकारियों के समय से जानकारी मुहैया न कराने के पर मुख्य सचिव को फटकार लगाई. कोर्ट ने कहा कि बार-बार निर्देश दिए जाने के बावजूद सरकारी अधिकारी समय से जवाब दाखिल नहीं करते. वह सरकारी वकीलों का फोन भी नहीं उठाते.

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Allahabad High Court

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Published : Dec 22, 2022, 10:24 PM IST

प्रयागराजःहाईकोर्ट में लंबित मुकदमों में सरकारी अधिकारियों ने विधि अधिकारियों को समय से जानकारी मुहैया न कराने के मुद्दे पर मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा को तलब किया. कोर्ट में मुख्य सचिव ने आश्वासन दिया कि सरकार जल्द ही इस मामले का समाधान करेगी. मुख्य सचिव ने कोर्ट को बताया कि विभागों के सचिवों व विधि अधिकारियों के साथ बैठक कर समस्या का समाधान किया जाएगा, ताकि सरकारी वकीलों को मुकदमे से संबंधित विभागीय जानकारी समय सेमिल सके. वह अदालत में बेहतर तरीके से सरकार का पक्ष रख सकें.

मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति जे जे मुनीर की खंडपीठ मामले की सुनवाई कर रही है. उन्होंने कहा कि कोर्ट द्वारा बार-बार निर्देश दिए जाने के बावजूद सरकारी अधिकारी समय से जवाब दाखिल नहीं करते. वह सरकारी वकीलों का फोन भी नहीं उठाते. इससे मुकदमे की कार्रवाई बाधित होती है.

मुख्य सचिव ने इस मामले पर कहा कि महाधिवक्ता कार्यालय में हुए अग्निकांड के कारण बहुत सारे रिकॉर्ड जल गए. इसकी वजह से फाइलें उपलब्ध नहीं हो पाती है. मुख्य सचिव ने कोर्ट से हाईकोर्ट के रिकॉर्ड से फोटो कॉपी कर नया रिकॉर्ड बनाने की अनुमति भी मांगी. जिसे कोर्ट ने मंजूर करते हुए जाड़े की छुट्टियों के दौरान हाईकोर्ट के रिकॉर्ड से नई फाइलें तैयार करने की अनुमति दी है.

मुख्य सचिव ने विभागीय अधिकारियों की जवाबदेही तय करने के लिए पोर्टल आधारित सिस्टम तैयार करना एक उचित कदम बताया. उन्होंने कहा कि मौजूदा व्यवस्था में जवाबदेही का अभाव है. पोर्टल आधारित व्यवस्था लागू करने से संबंधित अधिकारियों की जिम्मेदारी तय हो सकेगी. तकनीक का प्रयोग करके हम बेहतर नतीजे पा सकते हैं.

मुख्य सचिव को जवाब देते हुए कोर्ट ने कहा कि तकनीकी सुविधा पिछले 10-15 सालों से उपलब्ध है. इससे पूर्व मैनुअल व्यवस्था ही लागू थी और काम बेहतर तरीके से होता था. अब ऐसा क्या हो गया है जिसकी वजह से सरकारी अधिकारी कोर्ट की नहीं सुनते हैं. कोर्ट ने सरकार को इस बात पर भी आड़े हाथों लिया कि अदालत के आदेशों का पालन नहीं किया जा रहा है. आदेश का पालन कराने के लिए अवमानना याचिका दाखिल की जाती है. अधिकारी उस आदेश के खिलाफ भी स्पेशल अपील दाखिल कर देते हैं. कोर्ट ने इस प्रवृत्ति को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया.

अग्निकांड की जांच रिपोर्ट तलबःकोर्ट ने कहा कि महाअधिवक्ता कार्यालय में अग्निकांड की घटना को 5 माह बीत चुके हैं. अभी भी इसकी जांच जारी है. अब तक जांच का कोई नतीजा सामने नहीं आया है. मुख्य सचिव ने कोर्ट को बताया कि अग्निकांड के बाद महाधिवक्ता कार्यालय के भवन की जांच के लिए एमएनएनआईटी को 85 लाख रुपए दिए गए हैं.

इस पर कोर्ट ने कहा कि इतनी बड़ी रकम देने के बावजूद भी अब तक यह नहीं तय किया जा सका कि इस घटना के पीछे कौन जिम्मेदार है. महाधिवक्ता कार्यालय का भवन लगभग 12 साल पहले बनकर तैयार हुआ है. जिन लोगों ने भवन बनाया और जिन लोगों ने इसमें अग्निशमन उपकरण लगाया, उनकी जवाबदेही तय की जानी चाहिए. घटना के समय कोई भी उपकरण काम क्यों नहीं कर रहा था. कोर्ट ने निर्देश दिया है कि जांच रिपोर्ट अदालत के समक्ष प्रस्तुत की जाए.

सुनवाई के दौरान अदालत ने इस बात पर भी नाराजगी जाहिर की कि तमाम सारे छोटे-छोटे मुद्दे हैं, जो न्याय व्यवस्था के सुचारु संचालन में बाधा पैदा कर रहे हैं. मगर सरकार उन पर ध्यान नहीं दे रही है. जबकि, इनमें से एक दो मामले ही ऐसे होंगे जिनमें वित्तीय प्रबंध की आवश्यकता है. अदालत ने कमर्शियल कोर्ट का उदाहरण देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद पूरे प्रदेश के लिए सिर्फ 10 कमर्शियल कोर्ट ही बनाये गये है. उन्हें भी गठित करने में सरकार को कई महीने लग गए.

एक माह पहले नहीं दे सकते कॉज लिस्टःमुख्य सचिव ने कोर्ट से अनुरोध किया कि मुकदमों की सूची कॉज लिस्ट 1 माह पहले उपलब्ध करा दी जाए. इससे जवाब दाखिल करने में सुविधा होगी. इस पर कोर्ट ने कहा कि यह संभव नहीं है, क्योंकि कॉज लिस्ट 2 दिन पहले ही तैयार होती है. कई बार मुकदमों में 2 या 3 दिन का समय दिया जाता है. इसलिए इतने पहले से कॉज लिस्ट देना संभव नहीं है.

उल्लेखनीय है कि बीते दिनों हाईकोर्ट में सूचीबद्ध कई पुराने मुकदमों में सरकार की ओर से कोई पक्ष रखने के लिए सामने नहीं आया. सरकारी वकीलों ने इस पर कहा कि उन्हें विभागों की ओर से कोई जानकारी नहीं दी गई, वह क्या कर रहे हैं. इसलिए वे मुकदमे में पक्ष रखने में असमर्थ है. सरकारी वकीलों की यह भी शिकायत थी कि अधिकारी ना तो उनके पत्रों का जवाब देते हैं और ना ही उनका फोन उठाते हैं. कोर्ट ने इसे गंभीरता से लेते हुए इस मामले पर मुख्य सचिव को तलब किया था.

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