मेरठ: शहर में नेशनल मिडवाइफरी ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट (NIMT - National Midwifery Training Institute) की शुरुआत होने जा रही है. इस खास ट्रेनिंग के लिए मेरठ मेडिकल कॉलेज को भारत सरकार की तरफ से नामित किया गया है. इस संस्थान में नर्स की खास ट्रेनिंग होगी, जिन्हें नर्स प्रैक्टिशनर्स कहा जाएगा. देश में मातृ और शिशु मृत्यु दर में रोकथाम के लिए यह खास ट्रेनिंग होगी. अलग-अलग देशों से 3 अंतरराष्ट्रीय ट्रेनर्स के साथ देश के 5 ट्रेनर यह ट्रेनिंग देंगे.
गौरतलब है कि मातृ एवं शिशु मृत्यु दर कम करने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से मेरठ में राष्ट्रीय मिडवाइफरी ट्रेनिग संस्थान की स्थापना होने जा रही है. मेरठ मेडिकल कॉलेज यूपी में अकेला ऐसा संस्थान होगा जहां ये विशेष ट्रेनिंग होगी. इस खास ट्रेनिंग के लिए भारत सरकार की तरफ से 5 राष्ट्रीय ट्रेनर, जबकि 3 अंतरराष्ट्रीय ट्रेनर नियुक्त किए गए हैं. स्टेट नोडल अधिकारी व NIMT के उप अधीक्षक डॉ. दिनेश राणा ने बताया कि 4 राज्यों से 27 अभ्यर्थी मिडवाइफरी कार्यक्रम के अंतर्गत यह विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे. कुल 18 महीने की ट्रेनिंग होगी, जिसमें मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के बारे में प्रशिक्षित किया जाएगा.
जानकारी देते हुए मेडिकल कॉलेज मेरठ के डॉक्टर्स लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज मेरठ के प्रिंसिपल डॉ. आर सी गुप्ता ने बताया कि ये कॉन्सेप्ट वेस्टर्न वर्ल्ड से आया है. इसकी जरूरत इसलिए है क्योंकि अभी भी ग्रामीण इलाकों में डिलीवरी अधिक होती हैं. वहां पर एक्सपर्ट डॉक्टर भी नहीं होते हैं. ऐसे में मातृ और शिशु मृत्यु दर अधिक है. इसमें कमी लाने के उद्देश्य से यह पहल की जा रही है. उन्होंने बताया कि देश भर में अभी करीब 6 सेंटर बनाए जा रहे हैं. मेरठ में सबसे पहले बन चुका है, यहां किसी भी दिन शुरुआत हो सकती है. अलग-अलग देशों से ट्रेनर एपॉइंट हो चुके हैं. यहां पर ट्रेनर्स ट्रेंड होंगे, इसके बाद वो देशभर में अलग-अलग जगहों पर जाकर अन्य मेडिकल कॉलेजों में ट्रेंनिंग देंगे.
NIMT मेरठ की कॉर्डिनेटर डॉ. नमिता का कहना है कि नर्सिंग के क्षेत्र में तमाम कार्य हो रहे हैं, लेकिन यह कदम बेहद अहम है. डिलीवरी के समय या उससे पहले प्रॉपर गाइडेंस की जरूरत होती है. डॉक्टर्स के ऊपर वर्कलोड बहुत है. ऐसे में प्रशिक्षण प्राप्तकर्ता खुद ही किसी भी गर्भवती और उसके शिशु के लिए डॉक्टर की तरह गाइड कर सकेंगी. जच्चा-बच्चा के लिए क्या जरूरी है उन्हें पूर्ण ज्ञान होगा. सिजेरियन के लिए क्या जरूरी है, उसका भी बेहतर ख्याल रख सकेंगी. इससे मातृ और शिशु दर में कमी आएगी.
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डॉ. नमिता कहती हैं मिडवाइफ्स और आशा वर्कर्स काम कर रही हैं, लेकिन इस प्रशिक्षण के बाद वो अधिक जानकारी के साथ काम कर सकेंगी. अभी तक नर्स डॉक्टर्स के अंडर में काम करने के चलते जितना डॉक्टर ने बता दिया वो उतना ही करती हैं. लेकिन ट्रेनिंग के बाद नर्सेज का नाम हो जाएगा नर्स प्रैक्टिशनर्स मिडवाइफ्स. उनको सरकार की तरफ से कुछ छूट मिलेगी, जिसमें जरूरत पड़ने पर वो मरीजों के लिए कुछ दवाइयां भी लिख सकेंगी. उन्हें ही तय करना होगा कि वो नॉर्मल डिलीवरी करा सकती हैं या नहीं.
गौरतलब है कि इस विशेष ट्रेनिंग के बाद से नर्सेज का दर्जा बढ़ जाएगा और उन्हें नर्स प्रैक्टिशनर्स बोला जाएगा. डॉक्टर्स का मानना है कि सिजेरियन की संख्या बढ़ती जा रही है, उन्हें कम करना ही मुख्य मकसद है. साथ ही जननी की पूरी तरह से सुरक्षित डिलीवरी कराने के लिए नर्स प्रैक्टिशनर्स निश्चित ही महत्वपूर्ण भूमिका में होंगी.
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