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अमेरिका हो या फ्रांस कान्हा के ड्रेस की पूरी दुनिया में डिमांड

संपूर्ण लीलाओं और कलाओं का अवतार माने जाने वाले श्रीकृष्ण को भारत में ही नहीं पूरे विश्व में पूजा जाता है. कान्हा की साज-सज्जा के लिए मथुरा नगरी में कई हजार परिवार उनके पोशाक तैयार करते हैं. ब्रज में तैयार कान्हा के पोशाक की डिमांड अमेरिका समेत विश्व के कई देशों में है. देखें यह स्पेशल रिपोर्ट...

देखें यह स्पेशल रिपोर्ट.
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Published : Oct 22, 2020, 6:34 AM IST

मथुरा:वृंदावन एक धार्मिक स्थल है, जहां हर समय हरे राम, हरे कृष्ण की गूंज सुनाई देती है. अपने आराध्य भगवान नटखट कन्हैया के दर्शन के लिए देश ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी हर रोज हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने के लिए यहां पहुंचते हैं. वृंदावन ठाकुर जी के लिए 18 सौ से दो हजार परिवार वृंदावन में ठाकुर जी की पोशाक तैयार करते हैं. वृंदावन से बनी हुई यह पोशाकें पूरे विश्व भर में सप्लाई की जाती है.

देखें यह स्पेशल रिपोर्ट.
लीलाओं के अद्भुत प्रमाण
वृंदावन स्थान में राधा-कृष्ण की लीलाओं के अद्भुत प्रमाण आज भी देखने को मिलते हैं. हर कोई व्यक्ति ठाकुर जी के प्रेम में भक्ति में लीन होने के लिए मथुरा वृंदावन के मंदिरों में दर्शन करने के लिए पहुंचता है.वृंदावन के गौरा नगर, लोई बाजार, प्रताप बाजार, पत्थर पुरा और गोपीनाथ बाजार इलाके में हजारों परिवार ठाकुर जी की पोशाक, हार, मुकुट व जरी बनाने का काम करते हैं. पोशाक को अद्भुत आकर्षक बनाने के बाद कारीगर दिन रात एक कर के अच्छी पोशाक तैयार की जाती है. पोशाक तैयार होने के बाद थोक की दुकानों पर सप्लाई कर दी जाती है. उसके बाद ठाकुर जी की पोशाक एक्सपोर्ट के माध्यम से विदेशों में सप्लाई की जाती है. देश में इस कारोबार की सबसे बड़ी मंडी वृंदावन के नाम से जानी जाती है, जिसमें हजारों की संख्या में कारीगर पोशाकें तैयार करते हैं. जून में मुड़िया पूर्णिमा मेले से श्रद्धालुओं का आगमन ब्रज में शुरू होता है. ब्रज की होली महोत्सव होने के बाद श्रद्धालु धीरे-धीरे अपने घरों के लिए प्रस्थान करते हैं.

अमेरिका तक ड्रेस की सप्लाई
वृंदावन में बनी हुई पोशाक श्रद्धालु अपने आराध्य भगवान के लिए ले जाते हैं. इनके कीमत की बात की जाए तो बीस रुपये से लेकर छह हजार रुपये तक की पोशाक यहां तैयार की जाती हैं. श्रद्धालुओं की डिमांड के अनुसार अच्छी और महंगी पोशाकें भी तैयार की जाती हैं, जिसकी कीमत लाखों के ऊपर जाती है. एक्सपोर्टर की माने तो वृंदावन में बनी हुई पोशाक का कारोबार हर साल 800 करोड़ का होता है, जोकि अमेरिका, फ्रांस, इटली, इंग्लैंड, सिंगापुर, थाईलैंड व मलेशिया समेत विश्व के सभी देशों में ठाकुर जी की पोशाकें सप्लाई की जाती हैं.

दिन भर में तीन दर्जन पोशाक तैयार
महिला कारीगर राधा ने बताया कि हम सुबह कारखाने में आकर पोशाक में मोती लगाने का काम करते हैं. पोशाक को आकर्षक रूप दिया जाता है, ताकि ग्राहकों को पसंद आए. कारखाने में पांच कारीगर रोज सुबह 9 से शाम 6 बजे तक काम करते हैं. कारीगर सुनीता बताती हैं कि कारखाने में पांच लोग ठाकुर जी की पोशाक तैयार करते हैं. दिन भर में तीन दर्जन पोशाक तैयार हो जाती है. वृंदावन की बनी हुई पोशाक काफी दूर तक सप्लाई कराई जाती है.

सभी धर्मों के लोग करते हैं यह काम
वहीं थोक विक्रेता सतीश रस्तोगी ने कहा कि ठाकुर जी की पोशाक बनाने का काम वृंदावन में दो हजार से ज्यादा परिवार करते हैं. व्यापार को लगातार नया आयाम दिया जाता है. सभी धर्मों के लोग ठाकुर जी के लिए अच्छी पोशाक बनाते हैं. विश्व के सभी देशों में ठाकुर जी की पोशाक सप्लाई की जाती है. ब्रज के मंदिरों में जो भी श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं, वह अपने आराध्य भगवान ठाकुर जी के लिए पोशाक, हार, मुकुट मोतियों की माला भी खरीद कर ले जाते हैं.

जन्माष्टमी पर होती है अधिक बिक्री
वहीं शहर के बड़े एक्सपोर्टर पीयूष गौतम ने बताया कि वृंदावन में सभी लोगों का अलग-अलग काम होता है. कोई मुकुट बनाता है, तो कोई माला, तो कोई पोशाक में जरी का काम करता है. कारीगर हाथ और मशीनों द्वारा पोशाक भी बनाते हैं. ठाकुर जी की पोशाक बीस रुपये से लेकर 55 सौ रुपये तक की पोशाक तैयार की जाती है. लोगों की डिमांड के अनुसार जितनी अच्छी पोशाक होती है, उतनी ही ज्यादा उसकी कीमत होती है. ठाकुर जी की पोशाक की बिक्री जन्माष्टमी के पर्व पर अधिक होती है. दिवाली तक ठाकुर जी की पोशाक ज्यादातर बाजारों में सेल हो जाती है. हर साल जन्माष्टमी से दिवाली तक का कारोबार 600 करोड़ रुपये का होता है. वृंदावन की बनी हुई पोशाक विदेशों में भी एक्सपोर्ट की जाती है.

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