मैनपुरी: जनपद में धड़ल्ले से लग रहे बायो डीजल पंप की अनुमति कौन दे रहा है, इसकी किसी को कोई जानकारी नहीं है. अंधेरगर्दी का आलम यह है कि एक पेट्रोल पंप के लाइसेंस के लिए जहां कई विभागों की अनुमति और लंबी प्रक्रिया से गुजरना होता है, वहां जनपद में तेजी से बायो डीजल पंप लग रहे हैं. लेकिन किसी को इस बात की जानकारी नहीं है कि भला कौन इन्हें लगवा रहा है और किस विभाग से इसकी अनुमति दी जा रही है. इतना ही नहीं ज्वलनशील पदार्थ होने के बावजूद यहां आज तक न तो सैंपल लिए गए और न ही अग्निशमन के पर्याप्त उपाय किए गए हैं. वहीं, कोई भी विभाग इस मामले की जांच व जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है.
वहीं, बड़ा सवाल यह भी है कि इनके पास भला बायो डीजल आ कहां से रहा है और जो आ रहा है वो प्रमाणित है या फिर मिलावटी है. हालांकि, सूत्रों की मानें तो बायो डीजल की आड़ में मिलावटी डीजल बेचा जा रहा है. वहीं, कुछ जगहों पर तो पेट्रोल भी बेची जा रही है. वहीं, ईटीवी भारत की पड़ताल में जनपद के रामनगर, कैथोली, वेबर, भावत में अवैध पंप भी मिले. जिनकी कुल संख्या 37 से अधिक होने की संभावना है. इसके बावजूद अवैध पंप संचालकों के खिलाफ कोई कार्रवाई अब तक नहीं हो सकी है तो वहीं आपूर्ति विभाग की ओर से नियम व गाइडलाइन जारी न होने का हवाला दिया जा रहा है. इधर, पंप संचालक के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई का न होना प्रशासनिक मशीनरी में तेल माफिया के हस्तक्षेप को दर्शाता है.
ऐसे तो पेट्रोल पंप के लिए पेट्रोलियम कंपनी से डीलर को लेटर ऑफ इंडेंट मिलता है. इसके बाद ही डीलर की ओर से जिला प्रशासन को लाइसेंस के लिए आवेदन दिया जाता है. जिस जमीन पर पंप खोलना होता है, उसकी एनओसी एडीएम देते हैं. इसके अलावा टाउन एंड कंट्री प्लानिंग, बिजली कंपनी, फायर ब्रिगेड, नगरीय निकाय या ग्राम पंचायत, स्टेट हाईवे या नेशनल हाईवे की एनओसी ली जाती है. यह एनओसी मिलने के बाद ही कंपनी और डीलर के बीच एग्रीमेंट होता है. इसके बाद कलेक्टर की ओर से डीलर को पेट्रोल-डीजल की खरीद, बिक्री और संग्रहण का लाइसेंस जारी किया जाता है.