लखनऊ : नियामक आयोग में दाखिल मल्टी ईयर टैरिफ रेगुलेशन 2019 के तहत रिलायंस रोजा की तरफ से पावर निकासी के लिए बनी 7.2 किलोमीटर 400 केवी ट्रांसमिशन लाइन के खर्चे पर ट्रांसमिशन टैरिफ के लिए विद्युत याचिका पर बीती बुधवार को आम जनता की सार्वजनिक सुनवाई बुलाई गई थी. सार्वजनिक सुनवाई की अध्यक्षता विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष अरविंद कुमार और विद्युत नियामक आयोग के सदस्य बीके श्रीवास्तव व संजय कुमार सिंह की उपस्थिति में संपन्न हुई. सबसे पहले पावर कॉरपोरेशन की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के वकील अभिषेक कुमार ने अपनी दलील रखते हुए कहा कि 'इस याचिका की सुनवाई जेनरेशन टैरिफ में होनी चाहिए, साथ ही उन्होंने जो अलग-अलग मदों में ज्यादा खर्च की मांग की गई थी उसका विरोध किया. कहा कि इसका भार प्रदेश के उपभोक्ताओं पर पड़ेगा, इसलिए नियामक आयोग इसे अनुमोदित न करे.' उन्होंने पावर कॉरपोरेशन की तरफ से अपना लिखित जवाब दाखिल कर आगे एक और सप्ताह का समय मांगा है.
उपभोक्ता परिषद ने रिलायंस के ट्रांसमिशन लाइन खरीद को लेकर कही यह बात, जानिए पूरा मामला
नियामक आयोग में दाखिल याचिका पर आम जनता की सार्वजनिक सुनवाई बुलाई गई थी. इसमें पावर कॉरपोरेशन की तरफ से अपना लिखित जवाब दाखिल कर आगे एक और सप्ताह का समय मांगा है.
By ETV Bharat Uttar Pradesh Team
Published : Aug 25, 2023, 7:55 PM IST
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने सुनवाई में मुद्दा उठाया कि विद्युत नियामक आयोग जो मल्टी ईयर टैरिफ रेगुलेशन 2019 के तहत रिलायंस रोजा की सुनवाई कर रहा है. उसमें स्पष्ट प्रावधानित है कि सिर्फ ट्रांसमिशन लाइसेंसी व वितरण लाइसेंसी इस रेगुलेशन के तहत याचिका दाखिल कर सकता है, फिर ऐसे में रिलायंस की रोजा को आज तक न तो ट्रांसमिशन का लाइसेंस दिया गया है और न ही वह डीम्ड लाइसेंसी ही आयोग ने रोजा को माना. फिर यह सार्वजनिक सुनवाई किस आधार पर की जा रही है? यह पूरी तरह असंवैधानिक है. सबसे बड़ा चौंकाने वाला मामला यह है कि रिलायंस की रोजा की तरफ से जो पिटीशन के साथ प्रपत्र दाखिल किए गए हैं और केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण को भी भेजे गए हैं, उसमें रिलायंस की रोजा ने अपने को ट्रांसमिशन लाइसेंसी बताया गया है जो पूरी तरह फोर्जरी का मामला है. उपभोक्ता परिषद की तरफ से यह मुद्दा उठाए जाने के बाद आयोग सकते में आ गया है. देश में पहली बार ऐसा देखने को मिल रहा है कि जिस याचिका की सुनवाई हो रही है वह लाइसेंसी ही नहीं है. अगर वास्तव में कानून की परिधि में रोजा को अपनी निकासी के लिए लाइन के निर्माण के खर्च की वसूली को लेना था तो उसे अपने जनरेशन टैरिफ के साथ ही लाना चाहिए था.
परिषद अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने आयोग के सामने यह भी मुद्दा उठाया कि रिलायंस की रोजा ने जो रखरखाव खर्च व कंटीन्जेंसीज सहित पिछले पांच वर्ष का एवरेज ट्रू-अप बिना ऑडिटेड आंकड़ों के आधार पर मांगा गया है, वह खारिज करने योग्य है. ऐसा न करने पर आने वाले समय में ये सीएजी ऑडिट का मामला बनेगा. कहा कि 'लगभग 33 करोड़ की लागत से बनी यह लाइन और प्रत्येक वर्ष पावर कॉरपोरेशन लगभग 6.8 करोड़ रुपया रिलायंस की रोजा को टैरिफ में दे रहा है. ऐसे में डिप्रेशन कास्ट के आधार पर पावर कॉरपोरेशन इस लाइन को ही क्यों नहीं खरीद लेता, उसमें उपभोक्ताओं को ज्यादा फायदा है. आयोग विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष ने अदालत में रिलायंस की रोजा व पावर काॅरपोरेशन को निर्देश दिया कि आप दोनों आपस में बैठकर तय कर लें इस मामले को किस आधार पर देखा जाए. पावर कॉरपोरेशन र्को निर्देश दिया कि वह अपने मैनेजमेंट को अवगत करा दें कि क्या वह इस लाइन को खरीदेंगे.'