लखनऊ :मुनीराम बीते 25 वर्षों से राजधानी में चोखा बाटी का ठेला लगाते आ रहे हैं, लेकिन 31 जनवरी को अचानक उन्हें अगले 20 दिनों के लिए ठेला हटाने का फरमान सुना दिया गया. मोहम्मद यूनुस ने तो पूरी जिंदगी लोगों के बाल संवारने में लगा दिए, लेकिन वो भी बीते 5 दिन से घर में हैं और अगले 20 दिन तक बिना काम के ही घर पर बिताने हैं. इन दोनों ही जैसे डेढ़ लाख परिवारों के घर पर 20 फरवरी तक चूल्हे जलने का इंतजाम नहीं है. शहर की चकाचक सड़कें, फूलों से सजे फुटपाथ, पेड़ों की टहनियों पर झिलमिलाती लाइट की चकाचौंध रोशनी के पीछे ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के लिए शहर को सजाने के लिए जिन पटरी दुकानदारों को हटाया गया उन परिवारों की 'स्याह रातों' को कोई नहीं देख रहा है.
साल 1998 को श्रावस्ती से लखनऊ आए मुनीराम का परिवार 10 लोगों का है और जलनिगम कार्यालय के पास चोखा बाटी का ठेला लगाते हैं. 2015 में उनका नगर निगम ने स्थाई ठेले का रजिस्ट्रेशन किया था. बीते 31 जनवरी को नगर निगम के लोग आए और ठेला अगले बीस दिनों के लिए घर ले जाने को कह दिया. उन्हें बताया गया कि लखनऊ में इन्वेस्टर समिट है, देश विदेश से लोग आ रहे हैं ऐसे में शहर को चमकाना है. अब मुनीराम पूछ रहे हैं कि किसी के घर का चूल्हा बुझा कर शहर का चमकाना किस काम का है. मुनीराम ने अपना ठेला घर पर खड़ा कर उधार के पैसे लेकर अगले बीस दिनों के लिए घर पर ही सब्जी बेचना शुरू कर दिया है. वो बताते हैं कि 'चार दिनों से दो किलो आलू भी नहीं बिकी क्योंकि यहां कोई खरीददार ही नहीं है.' मुनीराम बताते हैं कि 'घर के दस लोगों का पहले से ही चोखा बाटी से काम नहीं चल रहा था और अब बीस दिनों के लिए अगर वो ठेला नहीं लगाएंगे तो बच्चे भूखे मर जायेंगे.'
कैंसर की दवा के लिए परेशान है गुड़िया :मुनीराम की ही तरह शहर की इस जगमगाहट के पीछे उन्नाव की रहने वाली गुड़िया का भी चूल्हा बुझने की कगार पर है. गुड़िया 25 साल से मोती महल लॉन के सामने नर्सरी की दुकान लगा रही हैं. अब इसी नर्सरी की हर रोज की कमाई से 8 बच्चों का पेट पाल रही हैं, लेकिन इनकी भी दुकान हटा दी गई. अब इनके सामने दो वक्त की रोटी का सवाल खड़ा हो गया. गुड़िया कहती हैं कि 'पति की ही तरह उन्हें भी कैंसर है, दवा महंगी है. बच्चों को पालने और खुद की दवा का किसी तरह इस नर्सरी से गुजारा हंसी खुशी चल रहा था, लेकिन सौंदर्यीकरण के चलने उन्हें रजिस्टर्ड वेंडर होने के बाद भी हटा दिया गया. अब बच्चों लिए खाना और खुद के लिए दवा अगले बीस दिनों में कैसे लाएंगी.'
सीतापुर से 1987 को लखनऊ कमाने आए मोहम्मद यूनुस राणा प्रताप मार्ग पर एक कुर्सी और स्टूल रखकर नाई की दुकान लगा रहे थे. दुकान भी नगर निगम से अलॉट थी. जिसका उन्होंने पूरा शुल्क जमा किया है. इनका कहना है कि 'हर दिन डेढ़ से दो सौ रुपए कमा लेते थे. इसी से परिवार का खर्च चलता था. अब अगले 20 तारीख तक चूल्हा कैसे जलेगा ये सोचकर परेशान हैं. अब बस बीस दिन पूरे होने का इंतजार करते रहते हैं.' डालीगंज निवासी चंद्र किशोर भी इसी राणा प्रताप मार्ग पर 28 साल से नारियल पानी बेच रहे थे. वह बताते हैं कि 'दुकान बढ़ाने के लिए हाल ही में एक लाख रुपए कर्ज लिया था, नारियल घर पर पड़े हैं. दुकान तो हटा दी गई, लेकिन कर्जदार रोज दरवाजे पर खड़ा रहता है.'
ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट और जी 20 में आने वाले विदेशी मेहमानों के लिए पूरे लखनऊ को सजाया जा रहा है. इसके लिए पूरे शहर से पटरी दुकानदारों को हटा दिया गया है. इनमें वो दुकानदार भी हैं जिन्हें नगर निगम ने बकायदा रजिस्टर्ड करके उन्हें जगह आवंटित की है, लेकिन विदेशी मेहमानों की शान में धब्बा समझकर इन्हें भी हटा दिया गया.