लखनऊ:अदि गुरु शंकराचार्य ने हिंदू धर्म को संपूर्ण संसार में धर्म का प्रचार प्रसार किया था. उन्होंने धर्म से जुड़ी महिमा को व्यवस्थित करने का भरकस प्रयास किया. उन्होंने 'दसनामी संप्रदाय' बनाया, इस संप्रदाय से उन्होंने हिंदुओं को इकट्ठा कर अद्वैत वेदांत का प्रचार प्रसार किया. इन्होंने ही चार धाम की चार पीठ का गठन किया, जिसके बाद इन मठों पर शंकराचार्यों की परम्परा की शुरुआत हुई.
शंकराचार्य का जन्म केरल के मालाबार के कालड़ी जगह पर नम्बूद्री नाम के ब्राह्मण के यहां हुआ था, 32 साल की उम्र में वे निर्वाण प्राप्त कर ब्रह्मलोक चले गए.
बता दें कि 32 साल की अवस्था तक उन्होंने भारत का भ्रमण कर लिया था, साथ ही हिंदू समाज को एक सूत्र में पिरोने के लिए चार मठों ही स्थापना कर डाली थी. इन्ही चार मठों के शंकराचार्य ही हिंदुओं के मुख्य आचार्य माने जाते हैं.
अदि गुरु शंकराचार्य ने जिन चार प्रमुख मठों का निर्माण कराया उनमें पहला है दक्षिण भारत के श्रृंगेरी में स्थित वेदान्त ज्ञानमठ, दूसरा है पूर्वी भारत में स्थापित जगन्नाथपुरी का गोवर्धन मठ तीसरा मठ है पश्चिम भारत का द्वारका मठ यानी शारदा, कालिका मठ और चौथा उत्तर भारत में स्थापित ज्योतिर्पीठ.
शंकराचार्य के दर्शन को अद्वैत वेदांत का दर्शन कहा जाता है. शकराचार्य महान दार्शनिक, संत, महात्मा थे. उन्होंने ही इस ब्रह्म वाक्य को प्रचारित किया था कि 'ब्रह्म ही सत्य है और जगत माया, आत्मा की गति मोक्ष में है. अद्वैत वेदांत का दर्शन यानी वेद और वेदों के अंतिम भाग अर्थात वेदांत या उपनिषद में वह सभी कुछ है जिससे दुनिया के तमाम तरह के धर्म, विज्ञान और दर्शन निकलता है.
बता दें कि शंकराचार्य से सन्यासियों के दसनामी सम्प्रदाय का प्रचलन आरंभ हुआ. दरअसल, इनके चार प्रमुख शिष्य थे और उन चारों के कुल मिलाकर दस शिष्य हुए. इन दसों के नाम से सन्यासियों की दस पद्धतियां विकसित हुई. जिनका आगे विस्तार दसनामी सम्प्रदाय के नाम के रुम में हुआ.
दरअसल, आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सुबह केदारनाथ पहुंचकर सबसे पहले बाबा केदार की पूजा की. इसके साथ ही पीएम मोदी ने आदि गुरु शंकराचार्य (Adi Guru Shankaracharya) की प्रतिमा का अनावरण किया. इसके बाद पीएम मोदी केदार घाटी में पुनर्निर्माण कार्यों का लोकार्पण और शिलान्यास किया.
बता दें, 2013 में उत्तराखंड में आई बाढ़ में, केदारनाथ मंदिर के बगल में बनी आदि गुरु शंकराचार्य की समाधि (अंतिम विश्राम स्थल) बह गई थी. पुनर्निर्माण परियोजना के तहत केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे शंकराचार्य की नई प्रतिमा स्थापित की गई है. आदि शंकराचार्य की इस प्रतिमा की विशेषताएं भी हैं.
- आदि शंकराचार्य की प्रतिमा के निर्माण के लिए कई मूर्तिकारों ने काफी संख्या में मॉडल दिए थे. ऐसे करीब 18 मॉडल में से एक मॉडल का चयन किया गया.
- प्रधानमंत्री की सहमति के बाद मॉडल का चयन किया गया.
- कर्नाटक के मैसूर के मूर्तिकार अरुण योगीराज ने इस मूर्ति को बनाया है. उनकी पांच पीढ़ियां इस कार्य में जुटी हैं. अरुण खुद एमबीए हैं, लेकिन वह मूर्तियां बनाते हैं.
- 9 लोगों की टीम ने आदि शंकराचार्य की प्रतिमा पर काम किया और सितंबर 2020 में मूर्ति बनाने का काम शुरू किया था.
- तकरीबन एक साल तक प्रतिमा पर काम किया गया और इस साल सितंबर महीने में मूर्ति को मैसूर से चिनूक हेलीकॉप्टर के द्वारा उत्तराखंड ले जाया गया और यहां कृष्ण शिला (ब्लैक स्टोन) से मूर्ति को बनाया गया.
- शंकराचार्य की प्रतिमा के निर्माण के लिए लगभग 130 टन की एक ही शिला का चयन किया गया था.
- शिला को तराशा और कांटा-छांटा गया तो प्रतिमा का वजन तकरीबन 35 टन ही रह गया.
- आदि शंकराचार्य की प्रतिमा की ऊंचाई लगभग 12 फीट है. प्रतिमा निर्माण के दौरान शिला पर नारियल पानी का खूब इस्तेमाल किया गया जिससे प्रतिमा की सतह चमकदार हो और आदि शंकराचार्य के 'तेज' का प्रतिनिधित्व भी करे.