लखनऊ: समाजवादी पार्टी के लिए गठबंधन का फार्मूला क्या आत्मघाती साबित हो रहा है. लोकसभा 2019 का चुनाव परिणाम सामने आने के बाद यह सवाल समाजवादी खेमे में भी तेजी से गूंज रहा है. समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने 2017 में कांग्रेस के साथ और 2019 में बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन का कड़ा विरोध किया था लेकिन अखिलेश यादव ने उनकी बात नहीं मानी.
राजनीतिक विश्लेषक सुरेश बहादुर सिंह ने जानकारी दी.
मुलायम सिंह यादव करते रहे गठबंधन का विरोध
- समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान बार-बार कहते रहे कि गठबंधन का फॉर्मूला उन्होंने भाजपा से सीखा है.
- वह वह जोर देकर कहते रहे कि चुनाव जीतने का जो सूत्र है वह उन्हें मिल गया है.
- लोकसभा 2019 के चुनाव परिणाम आने के साथ ही यह स्पष्ट हो गया कि अखिलेश यादव भ्रम में थे और चुनाव जीतने के लिए कारगर सूत्र अभी उनकी पहुंच से बहुत दूर है.
- समाजवादी पार्टी को अपने बूते पर सत्ता के सिंहासन पर काबिल कराने वाले मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव के गठबंधन फैसले का हमेशा खुलकर विरोध करते रहे.
समाजवादी पार्टी को हुआ नुकसान
- 2017 में कांग्रेस के साथ फैसला करने को उन्होंने आत्मघाती बताया था तो 2019 में बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन करने पर कहा अखिलेश ने तो चुनाव लड़ने से पहले ही आधी सीटें गंवा दी.
- गठबंधन फार्मूले से बहुजन समाज पार्टी 0 से 10 सीटों पर पहुंच गई है और समाजवादी पार्टी 2014 लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी 5 सीटों पर ही खड़ी है.
- जाहिर है कि गठबंधन के फार्मूले से बहुजन समाज पार्टी को फायदा मिला है, लेकिन समाजवादी पार्टी के लिए गठबंधन घाटे का कारोबार बन गया.
- यही वजह है कि समाजवादी पार्टी के अंदर भी गठबंधन के फार्मूले पर विरोध के स्वर उठ रहे हैं और कार्यकर्ताओं को मुलायम सिंह यादव की नसीहत याद आ रही है.
- नेतृत्व की कमजोरी बने गठबंधन से पीछा छुड़ाने की बात भी कार्यकर्ता करने लगे हैं.
पिछले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को अकेले दम पर 5 सीटें मिली थी और उसका वोट बैंक 22 फ़ीसदी से ज्यादा था. इस बार बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन करने के बावजूद समाजवादी पार्टी का वोट बैंक लगभग साढे 4 फ़ीसदी कम हुआ है. उसे 17 % मतदाताओं का भरोसा ही हासिल हो सका है. गठबंधन से नुकसान उठाने की वजह से समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का रिश्ता कमजोर होने की आशंका बढ़ गई है. ऐसे में पार्टी अगर अपने कार्यकर्ताओं की भावनाओं का ख्याल करती है तो जाहिर है कि उसे 2022 विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने की तैयारी करनी पड़ेगी.
सुरेश बहादुर सिंह, राजनीतिक विश्लेषक