लखनऊ : उत्तर प्रदेश में दलित आबादी पर बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती अपना एकाधिकार मानती थीं, लेकिन 2017 के बाद उनका यह बहम टूट गया. दलितों ने जिस पार्टी को अपने लिए बेहतर समझा उसकी तरफ रुख करने लगे, इससे उत्तर प्रदेश में मायावती की दलितों पर पकड़ कमजोर होने लगी. हालांकि, 2022 विधानसभा चुनाव के लिए मायावती भी फिर से दलितों को एकजुट करने के लिए पूरा जोर लगाई हुईं हैं. लेकिन अब मायावती के लिए रास्ते आसान नहीं हैं.
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की कमान प्रियंका गांधी ने संभाली है और वे लगातार दलितों के बीच पहुंच रही हैं. दलित समाज को साधने का प्रयास कर रही हैं. हाथरस की घटना हो जिसमें एक दलित बेटी की बलात्कार के बाद हत्या किए जाने पर प्रियंका गांधी ने परिवार को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष किया. आगरा में पुलिस कस्टडी में अरुण वाल्मीकि नाम के युवक की मौत हुई तो प्रियंका गांधी, वाल्मीकि परिवार से मिलने आगरा स्थित उनके घर पहुंच गईं. न्याय दिलाने का भरोसा दिया. इसके अलावा आर्थिक मदद का भी एलान किया. प्रियंका ने जो वादा किया वह पूरा भी किया. कांग्रेस मुख्यालय पर बुलाकर अरुण वाल्मीकि के पीड़ित परिवार को ₹30 लाख की आर्थिक सहायता दी गई. इसके अलावा आजमगढ़ में एक प्रधान की हत्या के मामले में भी प्रियंका गांधी ने तत्काल अपना एक प्रतिनिधिमंडल भेजा.
कानपुर में भी दलित परिवार के साथ घटना हुई तो, कांग्रेस पार्टी दलित समाज के बीच पहुंची. अभी हाल ही में प्रियंका गांधी जब फिरोजाबाद में, लड़की हूं लड़ सकती हूं सम्मेलन को संबोधित करने आ रही थीं तो, रास्ते में ही वह सितारा जाटव के घर पहुंच गईं. उनसे हालचाल लिया और नए साल के मौके पर उनके लिए एंड्रायड फोन भी भेजा. प्रियंका गांधी दलित समाज के साथ खड़े होकर इस समाज को यह संदेश देना चाहती हैं कि कांग्रेस पार्टी ही दलितों की सच्ची हितैषी है.
वाल्मीकि मंदिर में पूजा अर्चना के साथ बस्ती में लगाई झाड़ू
प्रियंका गांधी दलितों को रिझाने का कोई मौका छोड़ना नहीं चाहती. लिहाजा, वह वाल्मीकि मंदिर में पहुंचकर पूजा अर्चना भी करती हैं. और जब भाजपा की तरफ से लखीमपुर में हिरासत में लिए जाने के दौरान उनके झाड़ू लगाने पर कमेंट किया जाता है तो, वह वाल्मीकि जयंती के मौके पर लखनऊ की एक वाल्मीकि बस्ती में झाड़ू लगाने भी पहुंच जाती हैं. वाल्मीकि समाज अपने बीच प्रियंका गांधी को पाकर उनसे जुड़ाव जरूर महसूस करता है, लेकिन यह जुड़ाव चुनाव में वोट के रूप में भी प्रियंका के साथ रहेगा इसकी फिलहाल अभी कोई गारंटी नहीं दी जा सकती.
केजरीवाल ने बताया खुद को दलितों का सबसे बड़ा हितैषी
इस बार उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी भी ताल ठोक रही है. दो जनवरी को आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल लखनऊ में जनसभा को संबोधित करने आए. इस दौरान उन्होंने जनता को लुभाने के लिए वादों की झड़ी लगा दी. उन्होंने भी दलितों की नब्ज टटोलते हुए खुद को दलितों का सबसे बड़ा मसीहा बता डाला. अंबेडकर के बहाने दलितों को साधने का प्रयास किया. अपने भाषण में उन्होंने कहा था कि मैं जितना बाबासाहेब को पढ़ता हूं मुझे बड़ा अच्छा लगता है.
अंग्रेजों के जमाने में उस समय वह अमेरिका से दो-दो डिग्री लेकर आए थे. बाबा साहेब का सपना था, सबको अच्छी शिक्षा मिलनी चाहिए, लेकिन 70 साल बीत गए हैं अच्छी शिक्षा नहीं मिल पाई है. बाबा साहब का सपना मैं पूरा करूंगा. मेरी पूरी जिंदगी बाबा साहेब का सपना पूरा करने में चली जाए तो भी कम है. लोगों को जानबूझकर अनपढ़ रखा गया है. उन्हें पढ़ने नहीं दिया गया. जाहिर सी बात है कि अम्बेडकर के बहाने केजरीवाल दलितों को साधने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते.
चुनाव में होती है दलितों की अहम भूमिका
यूपी की राजनीति में दलित मतदाताओं की संख्या पिछड़ा वर्ग के बाद सबसे ज्यादा है और यह वर्ग राजनीति में अहम भूमिका निभाता है. स्वतंत्रता के बाद इस जाति के मतदाताओं पर सबसे ज्यादा पकड़ कांग्रेस पार्टी की हुआ करती थी, लेकिन बाद में बसपा ने इस पर अपना अधिकार जमा लिया. दलित वोट बैंक जाटव और गैर जाटव में बटा हुआ है. दलितों में जाटों की संख्या सबसे ज्यादा है जो कुल वोट बैंक का लगभग 54 फीसदी है. हालांकि, दलित समुदाय में उपजातियों की संख्या 70 से ज्यादा है. दलितों में 16 फीसदी पासी और 15 फीसदी वाल्मीकि जाति का हिस्सा है.
क्या कहते हैं कांग्रेस नेता
ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय सचिव प्रदीप नरवाल कहते हैं कि मायावती ने दलितों को छोड़ा या न छोड़ा, लेकिन दलितों ने मायावती को जरूर छोड़ दिया. उत्तर प्रदेश में मायावती ने वोट बैंक की दुकान खोल ली है. किसी विधानसभा में जाएं तो पता चल जाएगा कि कोई एक करोड़ देता है तो कोई डेढ़ करोड़ देता है. पूरा का पूरा दलित वोटों का सौदा कर लिया है, जिसके चलते पूरा दलित समाज मायावती से अलग हो गया है. आज संविधान बचाने की लड़ाई है दुकान बचाने की नहीं. दलित समाज मायावती को छोड़कर कांग्रेस की तरफ आ चुका है.