लखनऊः उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की ओर से शनिवार को 'निराला स्मृति समारोह' का आयोजन संस्थान के यशपाल सभागार में किया गया. मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. सूर्यप्रसाद दीक्षित, विशिष्ट अतिथि भोपाल से आए साहित्यकार डाॅ. आनन्द कुमार सिंह और उप्र. हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डाॅ. सदानन्द प्रसाद गुप्त दीप प्रज्ज्वलित कर स्मृति समारोह की शुरुआत की.
निराला जीवन संग्राम से जुड़े लेखक
मुख्य अतिथि डाॅ. सूर्यप्रसाद दीक्षित ने निराला जी की जयंती की पर उन्हें नमन करते हुये कहा- निराला ने गद्य को जीवन के संग्राम की भाषा कहा. निराला जीवन संग्राम से जुड़े लेखक थे. उनका साहित्य जगत में प्रवेश गद्य के माध्यम से हुआ. 1918 में आई महामारी का वर्णन निराला के उपन्यास ‘कुल्ली भाट‘ में मिलता है. अभिव्यक्ति की क्षमता को गद्य कहा जाता है. निराला ने साहित्य के लगभग सभी विधाओं में लेखन किया. निराला के गद्य में जीवंतता है.
सारस्वत सभ्यता का चित्रण
विशिष्ट अतिथि भोपाल से आये डाॅ. आनन्द कुमार सिंह ने कहा कि भारती और सरस्वती की परिकल्पना को वह प्रसाद जी से ग्रहण कर आगे तक ले जाते हैं. निराला की कविता भारती सरस्वती को एकरूपता प्रदान करने वाली कविता है. निराला जी की कविता में भारत की विशालता दिखायी देती है. निराला ने तुलसीदास की कविता में भारतीय सांस्कृतिक इतिहास को अलग ढंग से देखने का प्रयास किया है. निराला अपने प्रतीकों के माध्यम से जाग्रति की बात करते हैं. निराला अपनी कविता में सारस्वत सभ्यता का चित्रण करते हैं. वसंत ऋतु निराला को इसलिए प्रिय है क्योंकि वह सरस्वती के प्राकट्य की ऋतु है.
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निराला की कविता में राष्ट्रीय चेतना का स्वर
समारोह की अध्यक्षता कर रहे डाॅ. सदानन्द प्रसाद गुप्त ने कहा कि निराला को लेकर जो आख्यान सुनियोजित ढंग से गढ़ा गया उसे तोड़ने का काम किया गया. निराला का गद्य उनकी कविता की भांति महत्वपूर्ण है. निराला और प्रसाद बीसवीं शताब्दी के दो बड़े कवि हैं जो विश्व साहित्य के बड़े कवियों से प्रतिस्पर्धा करते दिखायी देते हैं. आचार्य शुक्ल ने निराला को बहुवस्तुनिष्ट कवि कहा साथ ही निराला को कविता को संगीत व संगीत को कविता के निकट लाने वाला कवि कहा है. प्रखर आशावाद निराला की कविता का महत्वपूर्ण वैशिष्ट्य है. निराला की कविताएं अद्वैतवाद को कर्मवाद में बदलने के प्रतिफल स्वरूप लिखी गयी हैं. राष्ट्रीय चेतना का स्वर निराला की कविता में देखने को मिलता है. निराला के गद्य में व्यंग्य का चुटीलापन है. वह व्यंग्य भी बड़ी सहजता से लिखते हैं. भाषा पर उनका दृष्टिकोण व्यापक है. निराला गहरी आस्तिकता के कवि हैं. ‘राम की शक्ति‘ उनकी महत्वपूर्ण रचना है.
संस्थान के निदेशक ने किया स्वागत
समारोह में पूनम श्रीवास्तव ने वाणी वंदना की प्रस्तुत की. निराला जी के गीत क्रमशः ‘भारती जय विजय करे‘, ‘सुख का दिन डूब-डूब जाय‘ एवं ‘सखि वसंत आया‘ की संगीतमयी प्रस्तुति भी उन्होंने दी. अभ्यागतों का स्वागत करते हुये संस्थान के निदेशक श्रीकांत मिश्र ने कहा कि उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान साहित्यकारों की स्मृतियों को अक्षुण्य बनाने के लिए विभिन्न आयोजन समय-समय पर करता रहता है. कोविड काल में हमने सुरक्षा की दृष्टि से ऑनलाइन कार्यक्रमों को प्राथमिकता दी. निराला स्मृति समारोह में विश्वास है कि निराला जी के बहुआयामी व्यक्तित्व एवं कृतित्व के अनेक पक्ष विद्वान वक्ताओं के विचारों से उद्घाटित होंगे. समारोह का संचालन डाॅ. अमिता दुबे, सम्पादक उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने किया.