लखनऊ : विधान परिषद की रिक्त दो सीटों पर हुए चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने जीत हासिल की है. सभी जानते थे कि संख्या बल के आधार पर होने वाले इस चुनाव में जीत भाजपा की ही होनी है. बावजूद इसके अखिलेश यादव ने अपने प्रत्याशी उतारकर खुद की जग हंसाई करा ली. यह कोई पहला मौका नहीं है, जब समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कमजोर और सबको चमकाने वाला फैसला किया हो. विधानसभा चुनावों में कई सीटों पर वह जिताऊ प्रत्याशी की जगह बाहर से आए हारने वाले कैंडिडेट पर दांव लगाते देखे गए. राजनीतिक मुद्दों में भी अक्सर वह फैसला नहीं कर पाते कि उनकी पार्टी के लिए कौन सा मुद्दा सही रहेगा और कौन सा गलत. रामचरितमानस का विषय हो अथवा माफिया के संबंध में उनके बयान अखिलेश के दांव हमेशा ही उल्टे पड़े हैं.
दो सीटों पर सोमवार को हुए मतदान में भारतीय जनता पार्टी के पदमसेन चौधरी और मानवेंद्र सिंह की जीत हुई, जबकि सपा के रामकरण निर्मल और रामजतन राजभर को पराजय का सामना करना पड़ा. तीन विधायक वोट नहीं डाल पाए. इनमें सपा के इरफान सोलंकी और रमाकांत यादव तथा सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अब्बास अंसारी जेल में बंद होने का कारण मतदान नहीं कर सके. वहीं समाजवादी पार्टी के मनोज पासवान अस्वस्थ होने के कारण मतदान करने नहीं पहुंच सके.
भारतीय जनता पार्टी को रघुराज प्रताप सिंह की पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक का समर्थन भी हासिल हुआ और उन्होंने भाजपा के समर्थन में मतदान किया. वहीं सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने भाजपा के समर्थन में मतदान किया. यह समाजवादी पार्टी के लिए अफसोसजनक स्थित है कि जिस पार्टी के साथ गठबंधन कर वह चुनाव लड़े थे, वह भी उनके समर्थन में मतदान नहीं कर रही है. कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी के विधायकों ने मतदान से दूरी बनाए रखी.