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इस ट्रेन का इंजन बदलने में रेलकर्मियों को सर्दी में आ रहा पसीना, जानें क्यों

आजमगढ़ से दिल्ली के बीच संचालित कैफियत एक्सप्रेस ट्रेन डीजल व इलेक्ट्रिक इंजन से संचालित होती है. दिल्ली जाते समय लखनऊ में इस ट्रेन का डीजल इंजन बदलकर इलेक्ट्रिक इंजन लगाया जाता है. रेलवे ने इंजन बदलने के समय को 25 मिनट से 20 मिनट कर दिया है. ऐसे में कर्मचारियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

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Published : Dec 24, 2020, 3:54 PM IST

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कैफियत एक्सप्रेस के इंजन बदलने का समय घटाया गया.

लखनऊ: प्रचंड ठंड में भी इन दिनों रेलकर्मियों को पसीना आ रहा है. इसकी वजह है एक ट्रेन. ये ट्रेन रेलकर्मियों के जी का जंजाल बन गई है. इस ट्रेन का नाम है कैफियत एक्सप्रेस. इस ट्रेन का इंजन बदलने में रेलकर्मियों को काफी दिक्कत हो रही है. रेलवे प्रशासन ने इंजन रिवर्सिंग का समय 25 मिनट से घटाकर 20 मिनट कर दिया है. पहले से ही इतने कम समय में काम पूरा नहीं हो पा रहा था और अब रेलवे प्रशासन ने पांच मिनट का समय और कम कर दिया है. देरी होने पर रेलकर्मियों को चार्जशीट भी थमा दी जा रही है.

जानकारी देते अजय वर्मा मंडल मंत्री एनईआर मजदूर यूनियन.
लखनऊ जंक्शन पर बदला जाता है इंजनकैफियत एक्सप्रेस ट्रेन आजमगढ़ से दिल्ली के बीच संचालित होती है. ट्रेन डीजल व इलेक्ट्रिक इंजन से संचालित होती है. जब आजमगढ़ से दिल्ली के लिए ट्रेन रवाना होती है तो डीजल इंजन से लखनऊ तक लाई जाती है. यहां पूर्वाेत्तर रेलवे लखनऊ मंडल के लखनऊ जंक्शन रेलवे स्टेशन पर डीजल इंजन के स्थान पर इलेक्ट्रिक इंजन लगाया जाता है. इसके बाद ट्रेन आगे के लिए रवाना की जाती है. जब ट्रेन दिल्ली से लखनऊ जंक्शन वापस पहुंचती है तो उसमें इलेक्ट्रिक इंजन की जगह डीजल इंजन लगाया जाता है. ये है इंजन बदलने की वजहधीरे-धीरे रेलवे सभी रूटों पर इलेक्ट्रिफिकेशन का काम करा रहा है. अभी आजमगढ़ रूट पर विद्युतीकरण का काम नहीं हुआ है. यही वजह है कि इंजन की रिवर्सिंग की आवश्यकता पड़ती है. इंजन बदलने के लिए रेलवे प्रशासन पहले 25 मिनट का समय देता था, लेकिन अब उसे घटाकर 20 मिनट कर दिया है. इतने कम समय में इंजन की रिवर्सिंग करने में रेलकर्मियों को समस्याएं हो रही हैं.ये हैं कर्मचारियों की मांगकर्मचारियों का कहना है कि इंजन को बदलने के समय में कमी करने से काफी दिक्कत हो रही है. ट्रेन के रवाना होने में थोड़ी देरी पर चार्जशीट दे दी जाती है, जो बिल्कुल भी सही नहीं है. रेलवे को इस पर विचार करना चाहिए.

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