लखनऊ:लखीमपुर में किसान आंदोलन के दौरान हुई घटना और केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी की टिप्पणी से उपजा आक्रोश पूरे उत्तर प्रदेश में बहुत आसानी से फैल सकता था, लेकिन राकेश टिकैत की मध्यस्थता में हुए समझौते ने उत्तर प्रदेश सरकार के लिए संजीवनी का काम किया है. दिवंगत किसानों को भारी मुआवजा, आश्रितों को सरकारी नौकरी और आरोपितों पर मुकदमे के वादे के बाद बात बन पाई.
एक दिन के भीतर ही गुस्से से उपजा आंदोलन समाप्त हो जाना फिलहाल प्रदेश सरकार के लिए राहत वाली बात जरूर है, लेकिन कुछ माह बाद 2022 में जब चुनाव होगा, तब भाजपा को चार किसानों की मौत का जवाब समय-समय पर देना होगा. खासतौर पर तराई और पश्चिम उत्तर प्रदेश में. भाजपा को लखीमपुर मुद्दे को लेकर खास रणनीति बनानी होगी, जिसकी शुरुआत भाजपा ने अभी से की है. भाजपा की ओर से विपक्ष को लखीमपुर का गिद्ध साबित किया जा रहा है.
लखीमपुर में जो कुछ भी हुआ वह राष्ट्रीय स्तर का राजनैतिक मुद्दा बन गया है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी उनके भाई राहुल गांधी, पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, बसपा सुप्रीमो मायावती सहित अधिकांश बड़े विपक्षी नेताओं ने इस मामले में योगी सरकार को आड़े हाथों लिया है. पंजाब के उपमुख्यमंत्री और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने भी लखीमपुर जाने की कोशिश की, हालांकि वह कामयाब नहीं हो सके.
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