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लखनऊ: हाईकोर्ट ने शारीरिक शिक्षा अनुदेशकों को 17 हजार का मानदेय देने का दिया आदेश

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली कमेटी का आदेश रद कर दिया है. कोर्ट ने शारीरिक शिक्षा अनुदेशकों को 17 हजार का मानदेय देने का आदेश दिया है. इससे पहले उनका मानदेय 9800 रुपये प्रतिमाह कर दिया गया था.

लखनऊ हाईकोर्ट (फाइल फोटो).

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Published : Jul 3, 2019, 11:25 PM IST

लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने शारीरिक शिक्षा अनुदेशकों को 17 हजार रुपये प्रतिमाह का मानदेय दिए जाने के आदेश दिए हैं. न्यायालय ने इस सम्बंध में मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली कार्यकारी कमेटी व निदेशक, सर्व शिक्षा अभियान के आदेश रद कर दिए हैं. इस आदेश में शारीरिक शिक्षा अनुदेशकों का मानदेय नौ हजार आठ सौ रुपये कर दिया गया था.

याचियों ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली कमेटी के आदेश को दी चुनौती
न्यायालय ने याचियों को बढ़े हुए मानदेय के 9 प्रतिशत सलाना ब्याज का भी भुगतान करने का आदेश दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान की एकल सदस्यीय पीठ ने अनुराग व अन्य और अमित वर्मा व अन्य की ओर से दाखिल दो अलग-अलग याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया.

अनुदेशक शारीरिक शिक्षा के पद पर नियुक्त याचियों ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली कार्यकारी कमेटी के 21 दिसम्बर 2017 व स्टेट प्रोजेक्ट डायरेक्टर, सर्व शिक्षा अभियान के 2 जनवरी 2018 के आदेशों को चुनौती दी थी. इस आदेश के माध्यम से प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड के 27 मार्च 2017 के आदेश पर पुनर्विचार करते हुए याचियों के मानदेय को 9800 रुपये प्रतिमाह कर दिया गया था, जबकि प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड ने मानदेय 17 हजार रुपये किए जाने का आदेश दिया था.

न्यायालय ने मुख्य सचिव को दिया आदेश
न्यायालय ने मामले की विस्तृत सुनवाई के पश्चात दिए अपने आदेश में कहा कि प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड के आदेश पर पुनर्विचार करने का अधिकार मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली कमेटी को नहीं था. लिहाजा 21 दिसम्बर 2017 का आदेश विधि सम्मत नहीं है. न्यायालय ने उक्त टिप्पणी के साथ उक्त आदेश व इसके क्रम में पारित 2 जनवरी 2018 के आदेश को खारिज कर दिया. इसके साथ ही न्यायालय ने याचियों को मार्च 2017 से 17 हजार रुपये प्रतिमाह का मानदेय देने का आदेश मुख्य सचिव और स्टेट प्रोजेक्ट डायरेक्टर को दिया.

राज्य सरकार बढ़े हुए मानदेय के नौ प्रतिशत सालाना ब्याज का करे भुगतान
सुनवाई के दौरान न्यायालय ने पाया कि याचियों को 9800 रुपये मानदेय का भी भुगतान नहीं किया जा रहा है. उन्हें मात्र 8470 रुपये प्रतिमाह मानदेय का ही भुगतान किया जा रहा है. न्यायालय ने इसे याचियों का उत्पीड़न मानते हुए बढ़े हुए मानदेय के 9 प्रतिशत सालाना ब्याज का भुगतान करने का भी आदेश राज्य सरकार को दिया है.

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