लखनऊ:वन विभाग की जमीन बचाने के लिए अब इसके अधिकारी सुप्रीम कोर्ट की शरण में पहुंचे हैं. सोनभद्र के ऊम्भा गांव में आदिवासियों की जमीन को लेकर हुए विवाद में गोलीबारी और 10 लोगों की मौत के बाद वन विभाग का यह कदम चौंकाने वाला है. इससे नए विवाद भी जन्म ले सकते हैं, लेकिन अब सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट पर हैं कि वन विभाग की याचिका पर वह क्या रूख अपनाएगा.
वन विभाग की जमीन पर किए दावों की हो जांच
अपर मुख्य सचिव रेणुका कुमार को सरकार ने सोनभद्र, मिर्जापुर और चंदौली की वन जमीनों पर हुए कब्जे और पट्टों की विस्तृत जांच सौंप रखी है. उनकी जांच में वन विभाग के अधिकारी भी आ सकते हैं. उन्होंने तीनों जिलों के जिलाधिकारियों से कहा है कि जिन आदिवासियों और वनवासियों के वन विभाग की जमीन पर किए गए दावों को निरस्त किया गया है, उनकी नए सिरे से जांच की जाए और यह देखा जाए कि क्या दावा खारिज करने योग्य है.
बताया जाता है अनुसूचित जाति और अन्य परंपरागत वनवासी कानून 2006 के तहत जनवरी 2019 तक प्रदेश में अनुसूचित जातियों और अन्य परंपरागत वनवासियों ने सरकार के समक्ष जमीनों के मालिकाना हक के 93 हजार से अधिक दावे कर रखे हैं. इनमें से ज्यादातर को खारिज कर दिया गया है.
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वन विभाग ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का दिया हवाला
सोनभद्र जिले में सर्वाधिक 53 हजार दावे खारिज हुए हैं और चंदौली में परंपरागत वनवासियों के 14 हजार दावे खारिज बताए जा रहे हैं. विभागीय जानकारों का कहना है अपर मुख्य सचिव के आदेश के बाद अब पुनः परीक्षण में वन विभाग के अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध पाई जा सकती है. इसकी काट करने के लिए वन विभाग के अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की है,.