लखनऊ : भीषण सर्दी में घने कोहरे के चलते ट्रेनों की समयसारिणी तो बिगड़ ही जाती है, दुर्घटनाओं की संख्या में भी इजाफा हो जाता है. ट्रेनें लेट न हों और एक्सीडेंट में भी कमी लाई जा सके, इसी उद्देश्य से चार साल पूर्व ट्रेनों में 'त्रिनेत्र' डिवाइस लगाने का फैसला हुआ था. बाकायदा इसके लिए रेलवे ने ट्रेनों में डिवाइस लगाकर ट्रायल भी कर डाला था. दिल्ली, मुंबई और लखनऊ में डिवाइस का ट्रायल हुआ था, लेकिन चार साल से ज्यादा का वक्त बीत जाने के बाद अभी भी 'त्रिनेत्र' डिवाइस ट्रेनों में नहीं लगाई जा सकी. नतीजतन, अभी भी कोहरे में ट्रेनों के लेट होने का सिलसिला जारी है, साथ ही दुर्घटनाएं भी रुकी नहीं हैं. अब इस साल की सर्दी और कोहरा तो लगभग बिना 'त्रिनेत्र' के समाप्त हो चुका है. आरडीएसओ के जिम्मेदारों का कहना है कि इस साल के अंत तक हरहाल में 'त्रिनेत्र' डिवाइस का सफल परीक्षण होने के बाद ट्रेनों में लगा दिया जाएगा.
कोहरे के अलावा बारिश में भी प्रभावी
रेलवे से जुड़े अधिकारी बताते हैं कि ‘त्रिनेत्र‘ कोहरे और बारिश में प्रभावी तौर पर काम करने के लिए तैयार की गई थी. इसकी सहायता से दुर्घटनाओं और खराब मौसम में ट्रेनों की लेटलतीफी में कमी लाना उद्देश्य था. इस प्रोजेक्ट से जुड़े इंजीनियरों ने तब बताया था कि दुनिया में इस तरह की कोई डिवाइस अब तक तैयार नहीं की गई है जो कोहरे में इतनी दूरी से एकदम सटीक परिणाम देने वाली साबित हुई हो. बता दें कि प्रधानमंत्री भी ‘त्रिनेत्र‘ के ट्रायल रिजल्ट से काफी प्रभावित हुए थे.
क्या है डिवाइस की खासियत
‘त्रिनेत्र‘ डिवाइस की खासियत है कि कोहरे के दौरान अगर ट्रेन की पटरी पर कोई इंसान मौजूद होता है तो लोको पायलट को 950 मीटर पहले ही अलर्ट भेज देगी. इस डिवाइस में किसी व्यक्ति के अलावा पेड़, पौधे, बिल्ली, बंदर और चूहे जैसे जानवरों को भी करीब 500 मीटर पहले ही डिटेक्ट करने की क्षमता है. रेलवे प्रशासन ने लखनऊ एक्सप्रेस और दिल्ली-चंडीगढ़ रूट पर शताब्दी समेत कई ट्रेनों में इस डिवाइस का परीक्षण किया था, जो सफल भी साबित हुआ था. बावजूद इसके त्रिनेत्र अब ट्रेन में नहीं लगाई जा सकी है.