लखनऊ : अगले साल देश में लोकसभा के चुनाव होने हैं. ऐसे में सबसे ज्यादा अस्सी संसदीय सीटों वाला उत्तर प्रदेश किसी भी राजनीतिक दल के लिए सबसे अहम हो जाता है. सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी इस तथ्य से भली भांति वाकिफ है. यही कारण है कि केंद्र की भाजपा सरकार अपने फैसलों में उत्तर प्रदेश का खास ख्याल रखती है. रविवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने केंद्र सरकार की सिफारिश पर 12 राज्यों में गवर्नर और एक केंद्र शासित राज्य में डिप्टी गवर्नर नियुक्त किए. ताजा नियुक्तियों के साथ ही देश के अलग-अलग राज्यों में सात ऐसे राज्यपाल या उप राज्यपाल हो गए हैं, जो उत्तर प्रदेश के निवासी हैं. इन नियुक्तियों में जातीय समीकरणों का भी खास ध्यान रखा गया है. साफ है कि भाजपा वर्ष 2024 में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए हर संभव कदम उठा रही है.
उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में 17 आरक्षित हैं. यहां चुनावों में जातीय समीकरण अहम भूमिका निभाते हैं. केंद्र में सत्ता चाहने वाले किसी भी राजनीतिक दल के लिए उत्तर प्रदेश खासतौर पर अहम हो जाता है. वर्ष 2014 से केंद्र की सत्ता में कायम भारतीय जनता पार्टी भी किसी भी कीमत पर वर्ष 2024 का चुनाव जीतना चाहती है. हाल के दिनों में हुईं राज्यपालों की नियुक्तियां इसकी बानगी हैं. देश में अब सात ऐसे राज्य हो गए हैं, जहां उत्तर प्रदेश से संबंध रखने वाले राज्यपाल या उपराज्यपाल तैनात हैं. ताजा नियुक्तियों में गोरखपुर के निवासी शिव प्रताप शुक्ला को हिमाचल प्रदेश और वाराणसी के लक्ष्मण प्रसाद आचार्य को सिक्किम का गवर्नर बनाया गया है. शिव प्रताप शुक्ला ब्राह्मण तो आचार्य खरवार (आदिवासी) जाति से हैं. गाजीपुर के निवासी कलराज मिश्रा और मऊ के निवासी फागू चौहान क्रमश: राजस्थान और मेघालय के राज्यपाल हैं. जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा गाजीपुर से हैं. केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान बहराइच जिले से ताल्लुक रखते हैं. लद्दाख के डिप्टी गवर्नर बनाए गए डॉ. बीडी मिश्रा भदोही मूल के रहने वाले हैं. इस तरह देखा जाए तो भाजपा ने पूर्वांचल को मजबूत करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है. इन सभी नियुक्तियों में जातीय समीकरणों का भी पूरा ध्यान रखा गया है. खासतौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र और उसके आसपास के जिलों के नेताओं को खूब महत्व दिया गया है. स्वाभाविक है कि सरकार ने यह नियुक्तियां कर सभी वर्गों को लुभाने का प्रयास किया है. अब देखना होगा कि सरकार को चुनावों में इसका कितना लाभ मिलता है.
इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक डॉ. मनीष हिंदवी कहते हैं 'यूपी के कई वरिष्ठ नेताओं को देश के कई हिस्सों में गवर्नर बनाकर भेजा जा रहा है. इसके कई फायदे हैं. एक तो जो वरिष्ठ नेता हैं उन्हें उनका अधिकार दिया जा रहा है. एक अच्छा संदेश भी जा रहा है कि हमारे जो वरिष्ठ नेता हैं, उनका सम्मान है. दूसरी बात जातिगत समीकरण भी सही किए जा रहे हैं. तीसरी एक महत्वपूर्ण बात हमें याद आती है कि एक बार जब भैरोसिंह शेखावत को उप राष्ट्रपति बनाने का ऑफर दिया गया, तो उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पूरा कि आप हमें दिल्ली में देखना चाहते हैं या राजस्थान से बाहर. तो यह भी एक होता है, नई टीम को काम करने का अवसर देने के लिए जरूरी है कि ऊपर के नेताओं को कहीं न कहीं सेट कर दिया जाए, ताकि आंतरिक मतभेद सामने न आएं. यह भी एक बड़ा मसला होता है. तमाम लोगों को जो गवर्नर बनाया जा रहा है, उसके पीछे भी तमाम मंशा काम करती है. बहुत सारे समीकरण साधे जाते हैं. जैसे वर्ष 2024 का चुनाव आ रहा है, तो यह हाई टाइम है कि सारे समीकरणों को साध लिया जाए.'
यह भी पढ़ें : कानपुर देहात में अतिक्रमण हटाते समय मां-बेटी की मौत, पीड़ित परिजन बोले- प्रशासन ने जबरन मकान गिराया