लखनऊ: यूं तो आगे बढ़ते युग में हम कहीं न कहीं अपनी जमीन से बिछड़ते जा रहे हैं, लेकिन अब अपनी जमीन से जुड़ने के प्रयास में लोग काफी जतन भी करने लगे हैं. इसके लिए पाश्चात्य संस्कृति को छोड़कर अब लोग दोबारा भारतीय संस्कृति का भी रुख करने लगे हैं. इसमें मिट्टी से जुड़ने के काम में सबसे पहले उन्हें मिट्टी के बर्तन याद आते हैं. इन मिट्टी के बर्तनों की महत्ता बताने के लिए 23वें राष्ट्रीय युवा उत्सव में झांसी से आए भगीरथ ने एक स्टॉल लगाया है. उन्होंने ईटीवी भारत से खास बातचीत कर मिट्टी के बर्तन की महत्ता को बताया.
23वां राष्ट्रीय युवा उत्सव: अपने पुश्तैनी काम को नए युग से जोड़कर मिट्टी को दे रहे नया रूप
राजधानी लखनऊ में 23वें राष्ट्रीय युवा उत्सव के कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. इस कार्यक्रम में झांसी से आए भगीरथ ने 'वन डिस्टिक वन प्रोडक्ट' के तहत मिट्टी के बर्तनों का स्टॉल लगाए और इसकी उपयोगिता को बताया.
23वें राष्ट्रीय युवा उत्सव का आयोजन
झांसी से भगीरथ 'वन डिस्टिक वन प्रोडक्ट' के तहत 23वें राष्ट्रीय युवा उत्सव में एक स्टॉल लगाए हुए हैं. यह स्टॉल सिर्फ और सिर्फ मिट्टी के बर्तनों से लैस है. खासियत यह है कि इसमें ग्लास से लेकर मिट्टी के तवे, पानी की बोतल और प्रेशर कुकर तक शामिल हैं.
पिता-दादा भी करते थे बर्तन बनाने का कार्य
ईटीवी भारत से बातचीत में भागीरथ ने बताया कि यह उनका पुश्तैनी काम है. पिता और दादा तक इसी काम को करते चले आए हैं. उनको भी मिट्टी के बर्तन बनाने में महारत हासिल है, लेकिन समय बदल रहा है और इस समय के साथ चलने के लिए वह अपने बर्तनों में भी आधुनिकीकरण लाने का प्रयास कर रहे हैं.
हर तरीके के बनाए जाते हैं बर्तन
भगीरथ के लगे स्टाल में ₹25 के ग्लास से कीमत शुरू होकर यह कीमत 1100 रुपये के प्रेशर कुकर पर जाकर खत्म होती है. मिट्टी के बर्तनों के बारे में भगीरथ कहते हैं कि मिट्टी के बर्तनों की खासियत यह होती है कि इनमें किसी भी तरह के केमिकल का इस्तेमाल नहीं होता है. मिट्टी के बर्तन में खाना भी शुद्ध होता है. उन्होंने कहा कि लोग अब पाश्चात्य संस्कृति की तरफ कुछ ज्यादा ही जा रहे हैं और इस वजह से वह अपनी जमीन से भी दूर होते चले जा रहे हैं. मिट्टी के बर्तन उन्हें जमीन पर होने का एहसास भी करवा सकते हैं.
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