लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट में धर्मांतरण से जुड़े एक मामले की सुनवाई हुई, जिसमें कोर्ट ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत प्रकाशित की जाने वाली नोटिस अब अनिवार्य नहीं बल्कि वैकल्पिक होगा. कोर्ट ने साफ किया कि अगर शादी करने वाले जोड़े की तरफ से नोटिस को पब्लिश करने के लिए नहीं कहा जाएगा तो अधिकारी ऐसी कोई भी सूचना पब्लिश नहीं करेगा, साथ ही इस पर आपत्तियों को भी दर्ज नहीं किया जाएगा. अधिकारी शादी करवाने के लिए आगे की कार्यवाही करेगा.
न्यायमूर्ति विवेक चौधरी की एकल सदस्यीय पीठ ने इस मुद्दे पर विस्तृत सुनवाई की. कोर्ट ने पाया कि स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 की धारा 5 के तहत नोटिस का दिया जाना एक अनिवार्य प्रक्रिया है, जिसे धारा 6 के तहत प्रकाशित किया जाता है. न्यायालय ने कहा कि इस प्रकार का प्रकाशन स्वतंत्रता और निजता के अधिकार पर अतिक्रमण है, साथ ही यह विवाह के मामले में राज्य और अन्य लोगों को हस्तक्षेप का भी अधिकार देता है. न्यायालय ने इन टिप्पणियों के साथ पारित अपने निर्णय में कहा कि जो युगल स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत जो शादी करना चाहते हैं, वह एक लिखित अनुरोध मैरिज ऑफिसर को दे सकते हैं. इस अनुरोध पत्र के जरिए वे अपनी राय बता सकते हैं कि धारा 6 के तहत नोटिस प्रकाशित कराना चाहते हैं या नहीं. अगर युगल नोटिस का प्रकाशन करने का लिखित अनुरोध नहीं करता है तो प्रकाशन नहीं किया जाएगा.
मैरिज ऑफिसर को शंका होने पर अधिकार
न्यायालय ने अपने निर्णय में यह भी स्पष्ट किया है कि मैरिज ऑफिसर को यह अधिकार होगा कि वह पक्षकारों के पहचान, उम्र और उनके वैध सहमति की जांच कर ले साथ ही यह भी जांच ले कि पक्षकार शादी करने के लिए सक्षम हैं या नहीं. न्यायालय ने कहा कि आशंका होने पर वह यथोचित विवरण और प्रमाण मांग सकता है. कोर्ट ने निर्णय की प्रति मुख्य सचिव को भेजने के निर्देश दिए हैं, साथ ही मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि वह इस निर्णय के बारे में प्रदेश के सभी मैरिज ऑफिसर्स और सम्बंधित अधिकारियों को जानकारी मुहैया कराएं.