लखनऊ: प्रदेश भर में इन दिनों प्रदूषण का स्तर बढ़ता ही जा रहा है, जिसका सीधा असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ा है. प्रदूषण न केवल हमारे इम्युनिटी को कमजोर करता है. बल्कि सिर दर्द, सांस लेने में दिक्कत, आंखों में जलन समेत कई तरह की बीमारियां बढ़ाने का भी काम करता है. विशेषज्ञों का मानना है कि प्रदूषण बच्चों और बुजुर्गों की सेहत पर सबसे ज्यादा असर डालता है. ऐसे में बाहर निकलते वक्त सावधानी बरतना बेहद जरूरी है.
बच्चों पर असर
लोहिया के पीडियाट्रिक सर्जन डॉ. श्रीकेश सिंह बताते हैं कि इस बदलते मौसम के साथ बढ़ते प्रदूषण के चलते बच्चों में अस्थमा आदि अन्य समस्याओं के बढ़ने की संभावना तेज हो जाती है. इसके अलावा खांसी, जुकाम, रेशेज, खुजली और फीवर की संभावना भी बढ़ जाती है. बच्चों की नाक में बाल नहीं होते हैं. इसलिए दूषित कण हवा के जरिए फेफड़ों की झिल्लियों में पहुंच जाते हैं, जिससे बच्चों को सांस लेने में दिक्कत आती है.
21-40 उम्र वालों पर ज्यादा असर
बलरामपुर हॉस्पिटल के सीनियर चेस्ट स्पेशलिस्ट डॉ. ऐके गुप्ता बताते हैं कि युवाओं में प्रदूषण से फेफड़े की बनावट में बुरा असर पड़ता है. इसके अलावा सांस संबंधी बीमारी बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है. सबसे ज्यादा असर 21 से 40 वर्ष के युवाओं में देखने को मिलता है. बड़े-बुजुर्गों को तो खास ध्यान रखना चाहिए. क्योंकि 60 की उम्र के बाद फेफड़े पहले ही कमजोर होते हैं. ऐसे में अगर किसी को अस्थमा है, तो उसे अवश्य ही सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि प्रदूषित कण बढ़ने से अस्थमा अटैक की संभावना बढ़ जाती है.
प्रदूषण से हर मिनट तीन लोग ने गंवाई जान
पिछले साल वायु प्रदूषण के चलते हर मिनट औसतन तीन लोगों ने अपनी जान गंवा दी. बात बच्चों की करें तो साल 2019 में हर 15 मिनट पर तीन नवजात अपने जन्म के पहले महीने ही इन जहरीली हवाओं की भेंट चढ़ गए. इन हैरान करने वाले तथ्यों का खुलासा स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2020 की जारी एक वैश्विक रिपोर्ट से हुआ है. नवजात बच्चों पर वायु प्रदूषण के वैश्विक प्रभाव को लेकर किये गये इस तरह के पहले अध्ययन के मुताबिक, वर्ष 2019 में भारत में जन्मे 1,16,000 से ज्यादा नवजात बच्चे घर के अंदर और बाहर फैले वायु प्रदूषण की भेंट चढ गये. एसओजीए 2020 अध्ययन के मुताबिक, इनमें से आधी से ज्यादा मौतों के लिये बाहरी वातावरण में फैले पीएम 2.5 के खतरनाक स्तर जिम्मेदार हैं.