लखीमपुर खीरी: लखीमपुर-इंडो नेपाल बॉर्डर के सुदूर खीरी जिले से भी महात्मा गांधी का गहरा नाता रहा है. खीरी में आम जनता से लेकर अधिवक्ताओं, शिक्षकों, बुद्धिजीवियों में महात्मा गांधी का जादू सिर चढ़कर बोलता था. गांधी 1929 में खीरी जिले में आए, जहां बापू को आजादी की मशाल जलाए रखने को लोगों ने 3146 रुपये पांच आने इकट्ठे कर दान दिया था. इस दान की गवाह बनी थी खीरी जिले की दत्ता कोठी. दत्ता कोठी में महात्मा गांधी के साथ आजादी की मशाल थामे ऐसा कोई बड़ा लीडर नहीं बचा था, जो न आया हो.
मोहल्ला नौरंगाबाद में स्थित है दत्ता कोठी
शहर के कलेक्ट्रेट के पूर्वी गेट के करीब तीन सौ मीटर की दूरी पर मोहल्ला नौरंगाबाद में स्थित दत्ता कोठी आज सुनसान पड़ी है. लेकिन इसकी दरो दीवार पर आज भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की यादों की झलक दिखती है. बापू खीरी में कस्तूरबा गांधी के साथ आए थे.
स्टेशन पर लोगों ने किया जोरदार स्वागत
वरिष्ठ वकील और जिला कांग्रेस फाउंडर प्रेसिडेंट स्व. सीताराम दत्ता की कोठी पर ट्रेन से महात्मा गांधी लखनऊ से पहुंचे थे. लोगों ने बापू का स्टेशन पर जोरदार स्वागत किया था. अंग्रेजी हुकूमत से महात्मा गांधी लोहा ले चुके थे. पोरबंदर से निकल गांधी देश के कोने-कोने में जाकर जनमानस में देश की आजादी का जज्बा भरने लगे थे. स्वदेशी और अहिंसा बापू के बड़े औजार थे, जिसकी चोट अंग्रेजों को भारी पड़ने लगी थी.
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कस्तूरबा गांधी भी आईं थीं साथ
गांधी जी दत्ता कोठी में अकेले नहीं आए थे. उनके साथ कस्तूरबा गांधी, आचार्य कृपलानी, मीराबेन समेत कई नेता थे. जिले में कांग्रेस की कमान उस वक्त पंडित बंशीधर मिश्र को दी गई थी. पंडित बंशीधर मिश्र आजादी के दीवानों को एक कर आजादी की मशाल की लौ को बढ़ा रहे थे. गांधी जी भी उस लौ को और बढ़ाने के लिए जिले में आकर कांग्रेसियों से मिले.