कुशीनगर: दो वक्त की रोटी का ठीकाना नहीं है और पेट भरने के लिए पूरे परिवार को मजदूरी करनी पड़ती है. ऐसे में नौकरी की जगह खेल को करियर के रूप में चुनना बहते पानी पर कुछ लिखने की कोशिश करने जैसा ही तो है. लेकिन कुशीनगर जनपद के चिलवान ग्राम निवासी एक किशोर ने यह साबित कर दिखाया है कि यदि हिम्मत और जुनून हो तो कोई भी बाधा उसे उसके लक्ष्य से विमुख नहीं कर सकता. वह मजदूरी और चौकीदारी कर जेवलिन थ्रो के अभ्यास करता. इसका नतीजा यह रहा कि वह एक के बाद एक सफलता की सिढ़ियां चढ़ता चला गया और आज वह 23 अक्टूबर को दिल्ली में होने वाली नेशनल ओपन जेवनिल थ्रो गेम में (National Open Heavenly Throw Game) उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने जा रहा है.
बेहद गरीबी से जूझते परिवार में जागी उम्मीद
बता दें कि "तू भी है राणा का वंशज, फेंक जहां तक भाला जाए" को आदर्श वाक्य मानने वाले कुशीनगर जनपद के रामकोला विकास खंड के गांव चिलवान निवासी इंद्रजीत सहानी के पिता विजय बहादुर के पास महज 40 डिसमिल खेत है. इस खेत में इतना अनाज नहीं पैदा होता है कि इंद्रजीत के चार भाईयों और माता-पिता को दो वक्त की रोटी मिल सके. पेट भरने के लिए पूरे परिवार को मजदूरी करनी पड़ती है. और तो और रहने को टूटी झोपड़ी ही सहारा है. गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में उसकी प्रारंभिक शिक्षा हुई.
गांव के ही पूर्व जेबलिग खिलाड़ी बना कोच
साल 2018 की बात है, जब गांव के पास रेलवे की खाली पड़ी जमीन पर वह बच्चों के साथ खेला करता था. इंद्रजीत छठवीं का छात्र था और बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रहा था. उसके गेंद फेंकने के अंदाज को देख कर एथलीट रहे वीर बहादुर सिंह की नजर उस पर पड़ी. दुर्घटना के कारण खेल की दुनिया से दूर हुए वीर बहादुर सिंह ने उसे तराशने का मन बना लिया और उसे जेवनिल थ्रो का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया. इस समय इंद्रजीत की उम्र महज 14 साल थी.
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