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कुशीनगर के इंद्रजीत ने गरीबी को मात देकर चमकाया जेवनिल का हुनर, अब करेंगे नेशनल ओपन जेवनिल थ्रो गेम में UP का प्रतिनिधित्व

मिसाल उनकी नहीं, जो भर पेट भोजन और तमाम ऐशो आराम के बीच अपनी मंजिल हासिल करते हैं, बल्कि मिसाल उनकी बनती है जो तमाम संघर्षों के बीच बिना थके हारे अपने सपनों को साकार करने को दिन-रात होड़ तोड़ मेहनत करते हैं. आज हम एक ऐसे ही बेमिसाल किशोर की संघर्ष गाथा से आपको अवगत कराएंगे, जो अब नेशनल ओपन जेवनिल थ्रो गेम में उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने जा रहा है.

कुशीनगर के इंद्रजीत ने गरीबी को मात देकर चमकाया जेवनिल का हुनर
कुशीनगर के इंद्रजीत ने गरीबी को मात देकर चमकाया जेवनिल का हुनर

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Published : Oct 12, 2021, 11:41 AM IST

कुशीनगर: दो वक्त की रोटी का ठीकाना नहीं है और पेट भरने के लिए पूरे परिवार को मजदूरी करनी पड़ती है. ऐसे में नौकरी की जगह खेल को करियर के रूप में चुनना बहते पानी पर कुछ लिखने की कोशिश करने जैसा ही तो है. लेकिन कुशीनगर जनपद के चिलवान ग्राम निवासी एक किशोर ने यह साबित कर दिखाया है कि यदि हिम्मत और जुनून हो तो कोई भी बाधा उसे उसके लक्ष्य से विमुख नहीं कर सकता. वह मजदूरी और चौकीदारी कर जेवलिन थ्रो के अभ्यास करता. इसका नतीजा यह रहा कि वह एक के बाद एक सफलता की सिढ़ियां चढ़ता चला गया और आज वह 23 अक्टूबर को दिल्ली में होने वाली नेशनल ओपन जेवनिल थ्रो गेम में (National Open Heavenly Throw Game) उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने जा रहा है.

बेहद गरीबी से जूझते परिवार में जागी उम्मीद

बता दें कि "तू भी है राणा का वंशज, फेंक जहां तक भाला जाए" को आदर्श वाक्य मानने वाले कुशीनगर जनपद के रामकोला विकास खंड के गांव चिलवान निवासी इंद्रजीत सहानी के पिता विजय बहादुर के पास महज 40 डिसमिल खेत है. इस खेत में इतना अनाज नहीं पैदा होता है कि इंद्रजीत के चार भाईयों और माता-पिता को दो वक्त की रोटी मिल सके. पेट भरने के लिए पूरे परिवार को मजदूरी करनी पड़ती है. और तो और रहने को टूटी झोपड़ी ही सहारा है. गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में उसकी प्रारंभिक शिक्षा हुई.

कुशीनगर के इंद्रजीत ने गरीबी को मात देकर चमकाया जेवनिल का हुनर

गांव के ही पूर्व जेबलिग खिलाड़ी बना कोच

साल 2018 की बात है, जब गांव के पास रेलवे की खाली पड़ी जमीन पर वह बच्चों के साथ खेला करता था. इंद्रजीत छठवीं का छात्र था और बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रहा था. उसके गेंद फेंकने के अंदाज को देख कर एथलीट रहे वीर बहादुर सिंह की नजर उस पर पड़ी. दुर्घटना के कारण खेल की दुनिया से दूर हुए वीर बहादुर सिंह ने उसे तराशने का मन बना लिया और उसे जेवनिल थ्रो का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया. इस समय इंद्रजीत की उम्र महज 14 साल थी.

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हॉट मिक्सर प्लांट में मजदूरी और चौकीदारी करता है इंद्रजीत

इंद्रजीत बताता है कि खेलने में गरीबी आड़े आने लगी थी. कोच वीर बहादुर सिंह की प्रेरणा से वह हर हाल में खेल जारी रखने लगा. रुपये की व्यवस्था के लिए एक हॉट मिक्सर प्लांट में मजदूरी और चौकीदारी करने लगा, जिससे छोटा-सा क्वाटर भी मिल गया और उसमें रहकर अपनी पढ़ाई भी करता रहा. कोच भी थोड़ी बहुत मदद कर देते थे. इंद्रजीत के मुताबिक कोई खेल ग्राउण्ड नहीं होने के कारण रेलवे की खाली जमीन को साफ-सुथरा कर उसी पर जेवनिल थ्रो की प्रैक्टिस करने लगा.

बेमिसाल किशोर की संघर्ष गाथा

नेशलन ओपन जेबलिग थ्रो में अब इंद्रजीत यूपी का प्रतिनिधित्व करेगा

जिला मंडल पर आयोजित प्रतियोगिताओं में इंद्रजीत की शानदार प्रदर्शन के चलते हरदोई में आयोजित प्रदेश स्तरीय खेल में 57 मीटर भाला फेंक कर शानदार प्रदर्शन किया. इसका नतीजा यह हुआ कि आगामी 23 अक्टूबर को दिल्ली में आयोजित ओपन नेशनल जेवनिल थ्रो में यूपी का प्रतिनिधित्व करने के लिए इंद्रजीत को मौका दिया गया है. बगैर किसी प्रशिक्षण और खेल ग्राउण्ड के ऊंची-नीची जमीन पर प्रैक्टिस कर नेशनल प्रतियोगिता में इंद्रजीत के जगह पाने से गांव और क्षेत्र के लोग बहुत खुश हैं.

सुविधा और ट्रेनिंग मिले तो विदेश में भी करेगा नाम

इंद्रजीत को भाला फेंकने में मदद कर रहे वीर बहादुर सिंह का कहना है कि इंद्रजीत जेवनिल थ्रो का बेहतरीन खिलाड़ी है. ऐसे में अगर उसे थोड़ी सरकारी सुविधाएं और बेहतर ट्रेनिंग मिल जाए तो वह विदेशों में भी भारत का झंडा गाड़ सकता है. इसके प्रदर्शन को देख कोई इसे नजरअंदाज नहीं कर सकता है.

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