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कौशांबी: बेड़ियों से मिली मुक्ति, लेकिन तंगहाली का कब होगा हिसाब

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Published : Jun 27, 2020, 2:29 PM IST

उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले में एक पिता ने अपने बेटे को पेड़ में जंजीरों से जकड़ दिया था. पिता का कहना था कि उनका बेटा घर में बना पूरा खाना खा ले रहा था. राशन की कमी होने की वजह से परिवार परेशान है. फिलहाल पुलिस ने किशोर की जंजीरें खुलवा दी है, लेकिन परिवार अब भी कोई सरकारी मदद नहीं मिली है.

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पेड़ से बांधा गया किशोर.

कौशांबी:लॉकडाउन ने लोगों की परेशानियां बढ़ा दी हैं, किसी से रोजगार छीना तो किसी को भुखमरी के कागार पर खड़ा कर दिया है. कौशांबी जिले में भी लॉकडाउन ने एक पिता को बेबस बना दिया. आर्थिक तंगी के चलते पिता को बेरहम होना पड़ा. पिता ने अपने बेटे को लोहे की जंजीरों से घर के पास लगे पेड़ में बांध दिया.

जब पिता से ऐसा करने का कारण पूछा गया तो उनका दर्द छलक उठा और उन्होंने कहा कि घर में राशन नहीं हैं, सरकार से कोई आर्थिक मदद नहीं मिल रही. इस संकट की घड़ी में घर के सभी सदस्यों को खाना भी पूरा नहीं पड़ रहा, ऐसी स्थिति में बेटा सुन नहीं रहा वो भर पेट खाना खा रहा है. वह बिना कुछ बताए बाहर से घूम के आने के बाद घर में बना पूरा खाना खा जाता है. खाना न मिलने पर घर वालों से बदसलूकी भी करता है. ऐसे में कोई और चारा नहीं था, हमें उसे बेड़ियों में बांधना पड़ा.

बेड़ियों से मिली मुक्ति.

ये स्थिति अफसोसजनक थी. फिलहाल, पुलिस ने अब किशोर को तो बेड़ियों से आजाद करा दिया है, लेकिन परिवार की तंगहाली का हिसाब कौन करेगा? लॉकडाउन के चलते एक-एक पाई के लिए तरस रहे बुजुर्ग कंधई लाल के सामने परिवार चलाने की बड़ी चुनौती है. जिला प्रशासन ने इनको राशन और मदद मुहैया कराना तो दूर इनकी सुध भी नहीं ली है. कंधई लाल के 9 लोगों के परिवार में सिर्फ सरकारी मदद के नाम पर चार यूनिट राशन ही मिलता है. सरकारी अनदेखी के चलते परिवार को कोई भी मदद नहीं मिल रही है.

डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के पैतृक निवास सिराथू से मजहब 2 किलोमीटर दूर स्थित है सैनी गांव में कंधई लाल का परिवार रहता है. कंधई लाल मजदूरी करके 9 लोगों के परिवार को पालते हैं. 3 बेटियों की कंधईलाल ने शादी कर दी है. भूमिहीन कंधई लाल को सरकारी मदद के नाम पर सिर्फ 20 किलो राशन सरकारी गल्ले की दुकान से मिलता है. इसके अलावा उनकी पत्नी शकुंतला को न तो आज तक उज्जवला योजना के तहत गैस सिलेंडर मिला है न तो लॉकडाउन के दौरान महिलाओं के खाते में भेजे गए रुपये.

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सरकार ने लॉकडाउन के दौरान बेरोजगारों को मनरेगा के तहत रोजगार उपलब्ध कराना शुरू किया, लेकिन कंधाई लाल और उनके बेटे राकेश को मनरेगा के तहत भी काम नहीं मिला. लंबे समय से काम न होने की वजह से कंधाई का परिवार परेशान है. खाने के लिए पैसे नहीं हैं. परिवार की हालत इतनी बदतर है कि अपने ही बेटे को बेड़ियों में बांधना पड़ा. बेटे को तो पुलिस ने बेड़ियां मुक्त करा दिया है, लेकिन न जाने कब सरकार एक पिता की बेबसी को समझेगी और उनकी ओर मदद का हाथ बढाएगी. कंधई लाल जैसे कितने लोग हैं, जिनके परिवार भरपेट भोजन को तरस रहे हैं. इस पूरे मामले में जिला प्रशासन के आला अधिकारी कुछ भी कहने से बच रहे हैं.

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