जौनपुर:पूर्वांचल का गौरव कही जाने वाली शाहगंज की चीनी मिल कभी किसानों की आय का मुख्य जरिया हुआ करती थी, जो अब खंडहर में तब्दील हो चुकी है. आजादी से डेढ़ दशक पूर्व 1933 में शाहगंज चीनी मिल की स्थापना रत्ना शुगर के नाम से की गई थी. यह पूर्वांचल की पहली चीनी मील थी. चीनी मिल खुलने से किसानों की आय में वृद्धि होने लगी. एक तरह से इलाके की पूरी तस्वीर ही बदल गई, लेकिन समय चक्र ऐसा बदला कि सब कुछ पुरानी दशा में आ गया. सरकारों की उदासीनता ने किसानों की कमर तोड़ दी. लगातार घाटे में चल रही चीनी मिल को बसपा सरकार ने पोंटी चड्ढा के हाथों बेच दिया. फिलहाल अब शाहगंज की चीनी मिल का मुद्दा सिर्फ राजनीतिक मुद्दा बन कर रह गया है. वहीं वर्तमान भाजपा सरकार चीनी मिल के मुद्दे की जांच सीबीआई से करवा रही है.
शाहगंज की चीनी मिल पूर्वांचल की पहली चीनी मिल थी जिसे 1933 में रत्ना शुगर के नाम से स्थापित किया गया था. इस चीनी मिल की स्थापना राय प्रेमचंद्र ने की थी. चीनी मिल को सड़क मार्ग के अलावा रेल मार्ग से भी जोड़ा गया था. इस चीनी मिल की वजह से जौनपुर के गन्ना किसानों की किस्मत बदल गई थी, लेकिन लगातार घाटे के बाद 1986 में इस चीनी मिल को बंद कर दिया गया. वहीं चीनी मिल पर किसानों और मजदूरों का बकाया भुगतान के लिए काफी लंबा आंदोलन भी चला.