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गोरखपुर: 180 साल पुराने इस गिरजाघर में लगे हैं बेल्जियम के शीशे, जानिये चर्च की खास बातें

गोरखपुर का 180 साल पुराना गिरजाघर क्रिसमस डे पर पूरी तरह सज कर तैयार है. इस गिरजाघर में लगे शीशे बेल्जियम से मंगाए गए थे. साथ ही कहा जाता है कि अंग्रेजों के जमाने में यहां भारतीयों का जाना भी मना था. कई और खास बात जानने के लिए पढ़े पूरी खबर...

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गोरखपुर का गिरजाघर.

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Published : Dec 25, 2019, 7:46 AM IST

गोरखपुर:शहर का सबसे पुराना और महत्वपूर्ण गिरजाघर क्राइस्ट गिरजाघर है. यह पिछले 180 साल से अपनी भव्यता और महत्ता के लिए जाना जाता है. न सिर्फ गोरखपुर, बल्कि आसपास के कई अन्य जिलों से लोग यहां आते हैं. क्रिसमस के मौके पर गिरजाघर को सजाया जाता है और इसकी शोभा देखते ही बनती है. साल 1820 में गोरखपुर के तत्कालीन कमिश्नर बिएम बर्ड ने इस गिरजाघर की नींव रखी थी, जो 1830 में पूरी तरह बनकर तैयार हुआ.

गोरखपुर का 180 साल पुराना गिरजाघर.

इस गिरजाघर का 1941 में कोलकाता के मैट्रोपॉलिटेन ने उद्घाटन किया था. ईसाई समाज में उद्घाटन को पवित्रीकरण कहा जाता है. इसके क्रियाशील होने के बाद ब्रिटिश हुकूमत के अधिकारी प्रार्थना करने आने लगे.

इस गिरजाघर के प्रधान पुरोहित रेवरेन्ट डीआर लाल बताते हैं कि भारत की आजादी से पहले इस गिरजाघर में सिर्फ ब्रिटिश अधिकारियों को ही प्रवेश मिलता था. वह यहां पर बैठकर जिले की गतिविधियों पर चर्चा तो करते ही थे, साथ ही नई-नई योजनाओं की रचना भी करते थे. देश की आजादी के बाद यहां का माहौल बदला और यह गिरजाघर सभी के लिए खोल दिया गया. अब यहां हर धर्म-समाज के लोग बिना किसी रोक-टोक के आते हैं.

अपनी सुंदरता को सहेज कर रखा

डीआर लाल आगे बताते हैं कि इस गिरजाघर की स्थापत्य कला अद्भुत है. इसके निर्माण में सुर्खी, चूना और पत्थर के साथ ईंट का प्रयोग हुआ है. लकड़ियों का भी इसमें काफी प्रयोग किया गया है. कुछ साल पहले आये भूकंप में इसके एक पिलर में थोड़ी सी दरार आई थी. शहर के बीचोंबीच लाल बहादुर शास्त्री चौक पर मौजूद यह चर्च आज भी गर्व से अपनी भव्यता और सुंदरता को सहेज कर रखा है.

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गिरजाघर के सचिव अमर डिसूजा बताते हैं कि गिरजाघर में लगे शीशे काफी कीमती हैं और इन्हें बेल्जियम से मंगाया गया था. आज इस गिरजाघर को संचालित करने वाले ट्रस्ट के तहत शैक्षिक कार्यक्रमों के साथ-साथ कई और सामाजिक कार्यों को आगे बढ़ाया जा रहा है. क्रिसमस के मौके पर इसकी भव्यता देखने लायक होती है. यहां मेले जैसा माहौल होता है. प्रभु यीशु की आराधना भक्ति के लिए लोग यहां खिंचे चले आते हैं.

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