गोरखपुर:अंग्रेजों ने जिस कारागार में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को कैद किया था. इस बार 19 दिसंबर को वहां पर भव्य बलिदानी मेला लगेगा. इस दौरान हजारों की संख्या में लोग आजादी के नायक को श्रद्धांजलि देने के लिए जुटेंगे. शहादत स्थली बनाने के लिए जिले के सामाजिक कार्यकर्ता बृजेश राम त्रिपाठी का विशेष योगदान है. वह पिछले कई वर्षों से शहादत स्थल के मुक्ति का आंदोलन चला रहे थे, जो अब सफल हुआ है. उनके इस प्रयास पर सीएम योगी ने भी अपनी मोहर लगाई है. बिस्मिल की शहीद स्थली को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए प्रदेश सरकार ने करीब दो करोड़ रुपये का बजट भी जारी किया है.
जेल की जिस कोठरी में कैद थे बिस्मिल, उस जगह की जानिए पूरी कहानी
गोरखपुर जिले में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की शहादत स्थली पर पहली बार मेला लगेगा. इस दौरान उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए हजारों की संख्या में लोग जुटेगें. बिस्मिल की शहीद स्थली को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा. जिल जेल में अंग्रेजो में उन्हें कैद किया था. उसकी पूरी कहानी पढ़िए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट में.
लोगों की पहुंच से दूर थी बिस्मिल की तपोस्थली
अंग्रेजों ने उन्हें मंडलीय कारागार में 19 दिसंबर 1927 से कैद किया था. ईटीवी भारत से बातचीत में बृजेश राम त्रिपाठी ने बताया कि जेल की जिस कोठरी में बिस्मिल कैद थे औ जहां उन्हें अंग्रेजों द्वारा फांसी दी गई थी. वह स्थान लोगों की पहुंच से दूर थी. जेल प्रशासन ने दीवार का निर्माण कराकर उसे अपने अंदर कैद कर लिया था. जिस कारण लोग महान क्रांतिकारी के इस तपोभूमि का दर्शन नहीं कर पाते थे. सामाजिक कार्यकर्ता और अन्य लोग भी एक खास दिवस पर जेल के मुख्य द्वार से यहां प्रवेश करते थे. उन्होंने बताया कि वह भी कई बार जेल में बिस्मिल को नमन करने गए थे. उन्होंने कहा कि आजादी के नायक की शहादत और साधना स्थली को जेल परिसर से मुक्त कराने के लिए आंदोलन चलाया गया था. आंदोलन साल 2019 के सफल हुआ था.
हर साल शौर्य दिवस पर निकालते थे मसाल जुलूस
बृजेश राम त्रिपाठी इस आंदोलन से न सिर्फ अपनी पहचान बनाई बल्कि उनके शहादत दिवस को लोगों के मन मस्तिष्क तक पहुंचाने का भी काम किया. वह हर साल 'शौर्य दिवस' 16 दिसंबर से पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की याद में मशाल जुलूस निकालते थे. जिसके तहत 4 दिनों तक विभिन्न कार्यक्रम होते थे. इसके बाद 19 दिसंबर कि सुबह जेल परिसर पहुंचकर सैकड़ों की संख्या में लोग वीर सपूत को श्रद्धांजलि देते थे.