गोरखपुरः मुहर्रम का समय आते ही हर तरफ हुसैन के नारों से फिजा गुंजयमान हो जाता है. उक्त गांव में निवास करने वाले सभी विरादरी के लोग उनके इस कार्य में दिल खोल कर सहयोग करते हैं. क्षेत्र में इस गंगा जमुनी तहजीब का एक मिसाल है जो आपसी सौहार्द को बढ़ावा देता है. रामपुर के निवासी लोग बताते है कि 200 वर्षों से उनके पूर्वज झकरी कनौजिया के घर कोई संतान पैदा नहीं हुई था.
गोरखपुर: गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल है रामपुर बुजुर्ग का ताजिया
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में भटहट ब्लॉक क्षेत्र का रामपुर बुजुर्ग गांव दो सौ वर्षों से गंगा जमुनी तहजीब का एक अनूठी मिसाल पेश कर रहा है. यहां पर हिंदू समुदाय के लोग चार पुस्तों से ताजिया बनाते हैं और परंपरागत रीति-रिवाजों के साथ फूलवरिया स्थित कर्बला तक ले जाकर दफन करते हैं.
रोजा भी रखते हैं और नियाज फातिहा भी कराते हैं
मोहर्रम जिस रीति रिवाज के साथ मुस्लिम समुदाय के लोग मनाते हैं ठीक उसी परमपरा के साथ रामपुर बुजुर्ग में कन्नौजिया परिवार के लोग रोजा भी रखते हैं. नियाज फातिमा भी कराते हैं. रोट मलीदा भी चढ़ाते हैं. इस कार्यक्रम में शामिल होने उनके रिश्तेदार दूरदराज से उनके वहां दो दिन पहले से आ जाते हैं.
गांव के अन्य विरादरी के लोगों के सहयोग से कन्नौजिया लोग ताजिया को बनाते हैं. दसवीं मुहर्रम को फूलवरिया स्थित कर्बला पर ले जाकर दफन करते हैं. इस तरह के आयोजन गंगा-जमुनी तहजीब का मिशाल है. इस परम्परा को उक्त गांव के लोग दो सौ वर्षों से निभाते चले आए हैं. वहां के लोग बताते हैं कि ईमाम साहब से मांगी गई मन्नत कभी खाली नहीं जाती. छोटी बड़ी सारी इच्छा पूर्ण होती है.
मुस्लिम बिरादरी के लोग ताजिया तो बनाते हैं लेकिन बेच देते हैं
रामपुर बुजुर्ग गांव में मनिहार (चूड़ीहार) विरादरी के लोगों भी रहते हैं जो मोहर्रम से 4 माह पहले ताजिया बनाना शुरु कर देते हैं. उससे अपना रोजगार चलाते हैं. खास बात तो यह है कि मुस्लिम लोग भी चार पुस्त पहले से ताजिया बनाने और बेचने का कारोबार बड़े पैमाने पर करते हैं. लेकिन सोचने वाली बात तो यह है कि मुस्लिम विरादरी के लोग ताजिया तो बनाते हैं, लेकिन त्योहार के बनिस्बत इमाम बाड़ा पर उसको रखते नहीं हैं. सिर्फ अपना रोजगार चलाने के लिए बनाते हैं, उसको बेच देते हैं. लेकिन उसी गांव के हिन्दु विरादरी के लोग ताजिया स्वतः बनाते भी हैं.
सबसे आगे होता है इनका ताजिया सबसे पहले पहूंचता है कर्बला
ताजियादार खजांची कनौजिया बताते हैं कि आस पड़ोस के गांव के ताजियादार फुलवरिया गांव स्थित कर्बला में दफन करने ले जाते हैं. लेकिन मुस्लिम समुदाय के लोगों का ताजिया उस वक्त तक कर्बला नहीं पहुंचता है जब तक हम लोगों का ताजिया पहले कर्बला नहीं पहुंचता जब तक हम अपना ताजिया घर से लेकर नहीं निकलते हैं. तब तक उनका ताजिया नहीं निकलता है. दसवीं मुहर्रम को हम लोग अपना ताजिया जब लेकर निकलते हैं तो उनका ताजिया जुलूस के पिछे एक के बाद एक शामिल होता जाता है और कर्बला पर साथ लेकर हम लोग पहुंचते हैं सबसे पहले हमारा ताजिया दफन होता है उसके बाद उनका ताजिया दफन होता है
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