गोरखपुर: कहते हैं कि जल ही जीवन है और जीवन के लिए शुद्ध जल का होना तो बेहद जरूरी है. अगर बात करें मुख्यमंत्री के शहर गोरखपुर की, तो इस शहर में ही यह व्यवस्था लड़खड़ा गई है. नगर निगम के 70 वार्डों और जिले की 22 लाख की आबादी तक शुद्ध पेयजल पहुंचाने की जिम्मेदारी जल निगम और जलकल की है. पानी की सप्लाई व्यवस्था में आने वाली खामियों को दूर करने का काम जलकल करता है, लेकिन जब खामियां विकराल रूप ले लें तो उसे दूर करने वाला भी परेशान हो जाता है. कुछ यही हाल है गोरखपुर में वाटर सप्लाई की व्यवस्था से जुड़े हुए स्थानीय नागरिकों की, जिन्हें फिलहाल कहीं से कोई मदद मिलती दिखाई नहीं दे रही. भारी बरसात में गंदे पानी में डूबी पाइपलाइनें संक्रमित जल का भी वाहक बन रही है.
मांग के अनुसार नहीं मिल पा रहा पानी
गोरखपुर शहर के 70 वार्डों में निवास करने वाली जनता की बात करें तो इनकी संख्या करीब 10 लाख है, जिसे शुद्ध पेयजल के लिए 152 एमएलडी पानी की आवश्यकता है. इतने पानी की सप्लाई 121 नलकूपों और 87 मिनी नलकूपों से की जाती है. मांग के अनुसार, करीब 30 एमएलडी पानी कम पड़ता है.
20 साल पुरानी चल रही व्यवस्था
शहर में 31 ओवर हेड टैंक वाटर सप्लाई के लिए बनाए गए हैं, तो वहीं एक भूमिगत जलाशय भी है. प्रत्येक व्यक्ति के हिसाब से करीब 93 एलपीसीडी पानी की आवश्यकता पड़ती है. जिसकी सप्लाई 1180 किलोमीटर के दायरे में पाइप लाइनों के जरिए होता है. शहर में 4174 इंडिया मार्का हैंड पंप के साथ ही 485 वाटर स्टैंड पोस्ट भी बनाए गए हैं, जिससे राह चलते लोगों को भी पानी उपलब्ध हो सके. यह सारी व्यवस्था 20 साल पुरानी चल रही है और मौजूदा समय में आबादी और घरों का विस्तार तेजी के साथ हो रहा है.
शहर के बाहरी वार्ड तक नहीं पहुंचा वाटर सप्लाई
शहर के बाहरी वार्ड तक अभी वाटर सप्लाई नहीं पहुंच सकी है. कार्यदायी संस्था भी स्थानीय पार्षदों की डिमांड पूरी करने में पूरी तरह फेल है. वहीं स्थानीय लोग कहते हैं कि उन्हें अपने खुद के साधन से पानी पीने का इंतजाम करना पड़ता है. उनके घर तक वाटर सप्लाई हुई ही नहीं है, जो जल निगम और नगर निगम की संवेदनहीनता का बड़ा उदाहरण है.