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शहादत को नहीं मिला सम्मान, दुःखी है शहीद का परिवार

गोरखपुर जिले के बघराई गांव के रहने वाले प्रवीण राय 6 अप्रैल 2010 को छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमले में शहीद हो गए थे. उनकी शहादत के लगभग 15 साल होने वाले हैं. शहादत के समय बहुत से लोग आए बड़े-बड़े वादे किए गये, लेकिन उनका परिवार आज भी अपने लाल की शहादत को सम्मान न मिलने से दु:खी हैं.

शहादत को  सम्मान न मिलने से दुःखी है शहीद का परिवार
शहादत को सम्मान न मिलने से दुःखी है शहीद का परिवार

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Published : Apr 2, 2021, 5:20 AM IST

गोरखपुर: देश के सीमा की सुरक्षा हो या फिर आंतरिक सुरक्षा, इसमें ड्यूटी निभाने वाले जवान जब शहीद होते हैं तो उनकी शहादत पर आंसू बहाने वाले, गर्व की अनुभूति करने वाले, और श्रद्धांजलि सभा में श्रद्धा सुमन अर्पित करने वाले लोगों की भारी भीड़ दिखाई देती है. इसमें नेता, मंत्री और अधिकारी भी शामिल होते हैं. इस दौरान तरह-तरह की घोषणाएं भी होती हैं. शहीद के परिवार को समर्थन और सहयोग देने की बात भी खूब होती है, लेकिन यह सब महज कुछ दिनों और घंटों तक ही सिमट कर रह जाती है. हमारे देश में ऐसे तमाम उदाहरण हैं, जहां शहीद परिवारों की दशा खराब है. शहादत के वर्षों बाद भी शहीद को सम्मान न मिलने से वीर सपूत के परिजन बेहद दुखी हैं, लेकिन फिर भी हो कुछ नहीं रहा. गोरखपुर में एक ऐसे ही लाल की कहानी है, जो आज से 11 वर्ष पहले दंतेवाड़ा नक्सली हमले में शहीद हुआ था. लेकिन मौजूदा दौर में न तो उसके परिवार की कोई सुधि लेने वाला है और न ही उसकी शहादत का कोई प्रतीक ही नजर आता है.

शहीद प्रवीण राय के परिजनों से ईटीवी भारत की टीम ने की बातचीत
दंतेवाड़ा में नक्सली हमले में शहीद हुए थे प्रवीण राय
ईटीवी भारत की टीम ने गोरखपुर के बघराई गांव के ऐसे ही एक वीर सपूत के गांव पहुंची जो 6 अप्रैल 2010 को छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमले में शहीद हो गया था. प्रवीण राय नाम का यह सीआरपीएफ जवान वर्ष 2002 में नौकरी में आया था. कृषक परिवार यह बेटा अपने माता-पिता की तीन संतानों में सबसे बड़ा पुत्र था. सैन्य सेवा में जाने की उसकी ललक को देखकर उसके पिता से जो बन पड़ा उन्होंने किया, पढ़ाया, लिखाया, पाला- पोसा. बेटा नौकरी में गया तो परिवार में खुशी का माहौल भी बन गया.
नक्सली हमले में शहीद प्रवीण राय

घर के इकलौते कमाने वाले थे प्रवीण

प्रवीण घर के इकलौता कमाने वाले सदस्य थे, जिसके बल पर गांव में रहने वाला संयुक्त परिवार अपना जीवन का गुजर-बसर कर रहा था. लेकिन 6 अप्रैल 2010 का दिन इस परिवार के ऊपर आफत बनकर टूटा, जब नक्सली हमले में प्रवीण शहीद हो गए. एक तरफ गम का माहौल था तो दूसरे तरफ गर्व का भी. उसे श्रद्धांजलि देने वाले शासन सत्ता से जुड़े हुए लोग घर तक पहुंच रहे थे. बेटे की शहादत पर भाई और पिता सभी को गर्व हुआ, लेकिन इस दौरान जो भी वादे किए गए न तो उन्हें नेताओं ने पूरा किया और न ही स्थानीय जिला प्रशासन ने. शहीद के परिजन प्रशासन और नेताओं के द्वारा की जाने वाली घोषणाओं को याद दिलाते हुए गांव के प्राथमिक स्कूल का नाम शहीद के नाम से करने, प्रवेश द्वार और शहीद की प्रतिमा लगाने की मांग पिछले 15 वर्षों से करते चले आ रहे हैं. लेकिन न तो कोई नेता सुन रहा है न ही स्थानीय प्रशासन. यहां तक कि पीएमओ तक इसका पत्र परिवारजनों ने लिखा, जिसका उल्लेख करते हुए सीआरपीएफ के डीआईजी ने भी गोरखपुर प्रशासन को कई पत्र लिखे, लेकिन आज तक शहीद की शहादत को कोई सम्मान नहीं मिल पाया है, जिससे पूरा परिवार दुखी है.

शहीद के बेटे की आईएएस बनकर देस सेवा करने की इच्छा

प्रवीण राय की शहादत के 2 माह बाद उनका बेटा पैदा हुआ. वह जैसे-जैसे बड़ा होता गया अपने पिता के बारे में परिवार के लोगों और अपनी मां से उनकी शहादत की दास्तान सुनता रहा. उसे अपने पिता की वीरता पर गर्व है. लेकिन पिता के प्यार को न पाने का मर्म भी उसके दिल में छिपा हुआ है, जब भी कोई उसे पिता की याद से जोड़ता है यह मासूम बालक फफककर रो पड़ता है. ईटीवी भारत की टीम से बातचीत के दौरान भी कुछ ऐसा ही हुआ. वह कुछ बोल पाने से पहले ही रो पड़ता है. लेकिन एक बात जरूर कहता है कि मां कहती है कि उसके पिता का सपना था कि बेटा पैदा हो तो वह आईएएस बने. मैं अपने पिता का सपना आईएएस बनकर पूरा करूंगा और देश सेवा करूंगा.

शहीद प्रवीण राय की पत्नी और बेटा
सीआरपीएफ से मदद मिलने में परिवार को 4 साल लगे


शहीद को सम्मान देने के लिए जिनके ऊपर जिम्मेदारी थी चाहे वह स्थानीय प्रशासन से जुड़े लोग हों या गांव का प्रधान, ईटीवी भारत की तरफ से सभी से संपर्क साधा गया, लेकिन पंचायत चुनाव की व्यस्तता में ऐसे लोग कुछ भी बोलने से बचते रहे. देखा जाय तो प्रवीण राय की शहादत के बाद सीआरपीएफ से भी मिलने वाली मदद और अनुकंपा राशि को लेने में परिवार के लोगों को काफी दिक्कतें उठानी पड़ी, जिसमें उन्हें करीब 4 वर्ष लग गए.

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