गोरखपुरः सरकारी या निजी अनाथ आश्रम (government or private orphanage) में पल रहे बच्चों को कोई अपना बनाने वाला नहीं मिल रहा है, जबकि आश्रम में पलते हुए बच्चे बड़े होने के साथ ऐसी जरूरतों को महसूस करते हैं. गोरखपुर के अनाथ आश्रमों की यही स्थिति है. वहीं, फास्टर केयर स्कीम (Faster Care Scheme) के तहत 'पालक देखभाल योजना' के तहत इन बच्चों को गोद लिया जा सकता है. इस स्कीम में बच्चों और गोद लेने वाले परिवार का बाल कल्याण समिति(CWC) बाकायदा सर्वे का चयन करती है. इसमें पात्र पाए जाने वाले बच्चों को गोद देने की प्रक्रिया (child adoption process) पूरी की जाती है, लेकिन इसके तहत भी बच्चा गोद लेने वाले लोग आगे नहीं आ रहे.
जिला प्रोबेशन अधिकारी सर्वजीत सिंह के मुताबिक, बच्चा गोद देने की यह प्रक्रिया अल्प अवधि जो अधिकतम तीन साल की है, जिसके तहत बच्चे का भरण पोषण, लालन पलान करना है. शायद यह वजह भी हो सकती है इच्छुक परिवार आगे नहीं आ रहे. सीडब्ल्यूसी कमेटी इस अवधि के बीत जाने के बाद बच्चे और परिवार की सहमति के बाद पालन पोषण, गोद लेने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का निर्णय करती है.
हालांकि परिजनों को इसके तहत हर महीने बच्चे के भरण-पोषण के लिए महिला एवं बाल कल्याण विभाग से 2,000 रुपये प्रति माह दिए जाने का प्रावधान भी है. बस इसके लिए सीडब्ल्यूसी के दफ्तर में आवेदन करना होता है और जांच के बाद बच्चा गोद लेने वाले को सौंप दिया जाता है, लेकिन गोरखपुर कार्यालय में कोई आवेदन नहीं आने से इस प्रक्रिया को प्रारंभ करना और आगे बढ़ाना कठिन हो रहा है. अनाथ और निराश्रित बच्चों की देखभाल और संरक्षण के तहत फास्टर कैम स्कीम 'पालक देखभाल योजना' चल रही है. संतानहीन या फिर किसी बच्चे को गोद लेने की चाहत रखने वाले लोग इस योजना का लाभ ले सकते हैं, लेकिन आज तक एक भी बच्चे को इस योजना के तहत गोद नहीं दिया जा सका है.
जिला प्रोबेशन अधिकारी सर्वजीत सिंह ने बताया कि जो पात्र हैं उन्हें ही अनाथ बच्चों को गोद दिया जाएगा, जो देखरेख करने योग्य हों. बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) थानों से बच्चों को गोद लेने वालों का पूरा रिकॉर्ड मगाती है. इसमें पता किया जाता है कि उनका रहन सहन कैसा है. मेडिकल सर्टिफिकेट भी लिया जाता है, ताकि कोई बीमारी तो नहीं. उन्होंने बताया कि शायद इस स्कीम को लोगों के द्वारा स्वीकार इसलिए नहीं किया जा रहा है, क्योंकि इसमें कंडीशन यह है कि गोद लेने वाले बच्चे को 3 वर्ष तक के लिए ही पहले चरण में इच्छुक व्यक्ति को दिया जाता है.